परिचय:- इसे मुख्य रूप से गरीबों और आदिवाशी क्षेत्रों का फसल माना जाता है। कोदो, कुटकी उस समय लगाई जाने वाली खाद्यान फसलें हैं जिस समय पर उनके पास किसी अन्य प्रकार के अनाज खाने को उपलब्ध नहीं हो पाता था।
अगस्त-सितम्बर के प्रारंभ में पक कर तैयार होने वाली ये फसलें ऐसे समय में पक कर तैयार होती है, जब अन्य खाद्यान फसलें नही पक पाती और बाजार में खाद्यान का मूल्य बढ़ गया होता है।
भूमि की तैयारी:- इसे हर एक प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है। जिस भूमि में अन्य कोई फसल उगाना संभव नही होता वहां भी ये फसलें सफलता पूर्वक उगाई जा सकती हैं।
हल्की भूमि जिस में जल का निकास अच्छा हो इनकी खेती के लिये उपयुक्त होती है। बहुत अच्छा जल निकास होने पर सभी प्रकार की भूमि में उगाई जा सकती है।
भूमि की तैयारी के लिये गर्मी की जुताई करें एवं वर्षा होने पर पुनः खेत की जुताई करें जिससे मिट्टी अच्छी तरह से भुरभुरी हो जाए।
बीज का चुनाव एवं बीज की मात्रा:- भूमि के अनुसार बीज के उन्नत किस्म का चुनाव करें। हल्की पथरीली व कम उपजाऊ भुमि में जल्दी पकने वाली जातियों का तथा मध्यम गहरी व दोमट भूमि एवं अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देर से पकने वाली जातियों की बुआई करें।
कतारों में बुआई के लिये 8-10 किग्रा बीज तथा छिटकवां बोनी के लिये 12-15 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयुक्त होता है। कतारों में बोनी करने से निदाई-गुड़ाई में सुविधा होती है और उत्पादन में वृद्धि होती है।
बोनी का समय, बीजोपचार एवं बोने का तरीका:- वर्षा शुरुआत के साथ लघु धान्य फसलों की बोनी कर देना चाहिये। प्रारंभ में बुआई करने से उपज अच्छी प्राप्त होती है एवं रोग, कीट का प्रभाव कम होता है।
कोदो में सूखी बोनी मानसून आने के दस दिन पूर्व करें। इससे उपज में अन्य विधियों से अधिक उपज प्राप्त होती है। जुलाई के अन्त में बोनी करने से तना मक्खी कीट का प्रकोप बढ़ता है।
बोनी से पूर्व बीज को मेन्कोजेब या थायरम दवा से बीजोपचार करें। ऐसा करने से बीज जनित रोगों एवं कुछ हद तक मिट्टी जनित रोगों से फसल की सुरक्षा होती है।
कतारों में बोनी करने पर कतार से कतार की दूरी 20-25 से.मी. और पौधों से पौधों की दूरी 7 से.मी. उपयुक्त पाई गई है। इसकी बोनीलल्ल से.मी. गहराई पर की जानी चाहिये।
कोदो, कुटकी की किस्में, फसल सुरक्षा एवं भंडारण।
उन्नत किस्में:- जवाहर कोदों – 48, जवाहर कोदो – 439, जवाहर कोदो – 41, जी.पी. यू. के. – 3, जवाहर कुटीर, सीओ तथा पी आर सी है।
खाद एवं उर्वरक का उपयोग:- प्रायः इन फसलों में उर्वरक का प्रयोग नहीं किया जाता हैं। लेकिन कुटकी के लिये 20 किलो नत्रजन 20 किलो स्फुर/हेक्टे. तथा कोदों के लिये 40 किलो नत्रजन व 20 किलो स्फुर प्रति हेक्टेयर का उपयोग कर से उपज बढ़ा सकते है।
उपरोक्त नत्रजन की आधी मात्रा व स्फुर की पूरी मात्रा बुआई के समय एवं नत्रजन की षेष आधी मात्रा बुआई के तीन से पांच सप्ताह के अन्दर निदाई के बाद दे।
निदाई-गुड़ाई:- बुआई के 20-30 दिन के अन्दर एक बार हाथ से निदाई-गड़ाई करना चाहिये। तथा पौधे को संतुलित कर लें। यह कार्य 20-25 दिनों के अंदर कर ही ले,यह कार्य पानी गिरते समय सर्वोत्तम होता है।
फसल सुरक्षा, कीट एंव रोग:- तना की मक्खी, कंबल कीट, करवा रोग, घारीदार रोग इसमें लगने वाले प्रमुख रोग हैं।
फसल की कटाई गहाई एवं भंडारण:- फसल पकने पर कोदों व कुटकी को जमीन की सतह के 2,3 इंच उपर कटाई करें। गहाई कर उड़ावनी करके दाना अलग करें।
रागी, सांवा एवं कंगनी की तरह इसे भी खलिहान में सुखाकर, लकड़ी से पीटकर अथवा पैरों से गहाई करें। दानों को धूप में सुखाकर भंडारण करें।
भण्डारण करते समय सावधानियाँ:- भण्डार गृह के पास पानी जमा नहीं होना चैहिये। भण्डार गृह की फर्ष सतह से कम से कम दो फीट ऊंची हो।
कोठी, बण्डा आदि में दरार हो तो उन्हें बंदकर दे। इनकी दरार में कीडे हो तो चूना से पुताई कर नष्ट कर देें।
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