बाजरा भारत में उगाई जाने वाली एक ऐसी फसल है जो विपरीत परिस्थिति एवं सीमित वर्षा वाले क्षेत्रो तथा बहुत कम उर्वरको की मात्रा के साथ उगाई जाती है।
यह मुख्य रूप से शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रो मे उगाई जाती है। क्षेत्रो के लिए बाजरा दाने एवं चारे का मुख्य श्रोत माना जाता है। यह सूखा सहनषील एवं कम अवधि (2-3 माह) की फसल है जो कि लगभग सभी प्रकार की मिट्टियों मे उगाया जा सकता है।
बाजरा क्षेत्र एवं उत्पादन मे एक महत्वपूर्ण फसल है, विशेषकर भारतीय महिलाओ के लिए खून की कमी को पूरा करने का एक सुलभ साधन है। भारतवर्ष मे ही नही अपितु संसार मे महिलाये एवं बच्चे मे लौहतत्व तथा मिनरल की कमी पायी जाती है। ऐसे में बाजरा एक बेहतर विकल्प है।
जलवायु:- बाजरा की फसल के लिए तेजी से बढने वाली गर्म जलवायु की आव्यशकता होती है। यह 40-75 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रो के लिए उपयुक्त माना जाता है, तथा इसमे सूखा सहन करने की अदभुत क्षमता होती है।
बढ़वार के समय नम वातावरण अनुकूल रहता है। फूल अवस्था में वर्षा का होना इसके लिए हानिकारक होता है। अच्छी बढवार के लिए 20-28 सेन्टीग्रेट तापमान आदर्श है।
भूमि:- बाजरा को अनेक प्रकार की मिट्टी जैसे काली, दोमट एवं लाल मृदाओ मे सफलता से उगाया जा सकता है।
उन्नत किस्मे:- के.वी. एच. 108, जी.वी. एच. 905, 86 एम 89 (एम एच 1747), एम.पी.एम.एच 17 (एम.एच.1663) आदी कुछ प्रमुख किस्में हैं।
खेत की तैयारी:- एक गहरी जुताई के बाद 2-3 बार हल से जुताई कर पाटा से खेत को समतल करना चाहिए। पानी के निकास की उचित व्यवस्था करे।
बुआई के 15 दिन पहले 10-15 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालकर हल द्वारा मिट्टी मे मिला दे। दीमक के प्रकोप से बचने के लिए प्रति 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर क्लोरोपायरीफॉस 1.5 प्रतिषत चूर्ण खेत मे मिलाये।
बाजरा की बुआई का समय एवं खरपतवार नियंत्रण।
बुआई का समय एवं विधि:- वर्षा होते ही जुलाई के दूसरे सप्ताह तक इसे कतारो मे बोए। बीज को 2-3 सेमी. गहराई पर बोना चाहिए तथा लाइन से लाइन 45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 10-15 सेमी. आदर्श है।
पौधे रोपण़:- विपरीत परिस्थितियों में बाजरे का पौध रोपण करना उचित होता है।
सीधी बीज बुआई के पौध रोपण से लाभ:- फसल शीध्र पक जाती है तथा देरी से रोपाई करने पर भी कम तापमान का प्रभाव दाने बनने पर नही पड़ता है।
रोपे हुए पौधे की बढ़वार अच्छी होती है। क्योंकि लगभग तीन सप्ताह पुराने पौधे लगातार वर्षा स्थिति को भी अच्छी तरह से सहन कर सकते है, जो नए पौधे नहीं कर सकते।
नर्सरी तैयार करना:- एक हेक्टेयर भूमि के लिए 2 कि.ग्रा.बीज पर्याप्त है इसे 500-600 वर्ग मी. क्षेत्रफल मे बोना चाहिए। बीज की बुआई के लिए 1.2*7.5 मी. की क्यारियों मे 10 सेमी. दूरी एवं 1.5 सेमी. की गहराई पर करें।
पौधे की अच्छी वृद्धि के लिए 25-30 कि.ग्रा. कैल्सियम अमेनियम नाइट्रेट का प्रयोग करें। तीन सप्ताह बाद पौधे को उखाडकर खेत मे रोपण कर देना चाहिए।
उर्वरक:- मृदा परीक्षण के आधार पर ही उर्वरक देना उचित है। सामान्य स्थिति में नत्रजन, स्फुर तथा पोटाष उचित मात्रा में दें।
बोेने के लगभग 30 दिन पर शेष 40 कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए। उर्वरकों की आधार मात्रा सदैव बीज के नीचे 4-5 सेमी. गहराई पर बोते हैं।
खरपतवार नियंत्रण:- रासायनिक नियंत्रण हेतु बोनी के 25-30 दिन बाद 2-4 डी. 500 ग्राम मात्रा 400-500 ली. पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करे।
सकरी तथा चैडी पत्ती के खरपतवारो के नियंत्रण हेतु बोनी के तुरंत बाद एट्राजीन का छिड़काव करना चाहिए।
सिंचाई:- यह वर्षाधारित फसल है अतः सिचांई की कम ही आव्यशकता होती है जब वर्षा न हो तब फसल की सिंचाई करनी चाहिए। फसल को सिंचाई की इल बढवार के समय आव्यशकता होती है। बाली निकलते समय नमी अच्छी होनी चाहिए।
कटाई एवं भण्डारण:- फसल पूर्ण रुप से पकने पर कटाई करेके ढेर को खेत मे खडा रखे तथा गहाई के बाद ओसाई करे। दानो को धूप मे अच्छी तरह सुखाकर भण्डारित करे।
उपज:- वैज्ञानिक तरीके से सिंचित अवस्था मे खेती करने पर 30-35 क्विटल दाना तथा 100 कडवी प्रति हेक्टेयर मिलती है। हाईब्रिड प्रजातिया से 40-45 क्विटल तक उपज प्राप्त होती है।
औसत आय –
कुल आय = 55000 /-
कुल लागत = 30000/-
शुद्ध आय = 25000/-
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