चौलाई की खेती, फायदे एवं व्यापारिक लाभ।

चौलाई का वानस्पतिक नाम ऐमारेन्थस ट्राईकलर है और यह ऐमारेन्थेसी कुल का है। चौलाई गर्म मौसम में उगाये जाने वाली एक पत्तियों वाली सब्जी है, जिसे भारत के अलावा दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका, दक्षिणी पूर्वी एशिया, पश्चिम अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका में भी उगाया जाता है।

परिचय:- चौलाई का वनस्पतिक नाम ऐमारेन्थस ट्राईकलर है और यह ऐमारेन्थेसी कुल का है। चौलाई गर्म मौसम में उगाये जाने वाली एक पत्तियों वाली सब्जी है, जिसे भारत के अलावा दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका, दक्षिणी पूर्वी एशिया, पश्चिम अफ्रीका और पूर्वी अफ्रीका में भी उगाया जाता है।

इसकी खेती ज्यादातर हिमालय क्षेत्रों में की जाती है। इसे अर्ध-शुष्क वातावरण में भी उगाया जा सकता है पर गर्म वातावरण में अधिक उपज मिलती है। चौलाई का सेवन भाजी व साग (लाल साग) के रूप में किया जाता है।

फायदे:- इसमें अनेकों औषधीय गुण होते हैं, जिस वजह से इसे आयुर्वेद में अनेक रोगों में उपयोगी बताया गया है। यह सभी प्रकार के विषों का निवारण कर देता है, इसलिए इसे विषदन भी कहा जाता है। इसके अलावा इसमें सोना धातु भी पाया जाता है जोकि अन्य सब्जियों में नहीं पाया जाता।

इसमें विटामिन सी भरपूर होता है। इसकी डंडियों और पत्तियों में खनिज, प्रोटीन, कैलोरीज, मैग्नीशियम, सोडियम, लोहा, विटामिन ए, सी प्रचुर मात्रा में मिलते है।

चौलाई का लाल साग एनीमिया में बहुत फायदे मंद होता है। इसके अलावा चौलाई पेट के रोगों के लिए, दांतों के रोग में, कंठ के रोग में, रक्तपित्त (नाक-कान से खून आना) में, घाव सुखाने के लिए, खांसी में खून आने की बीमारी में फायदे मंद होता है।

किस्में:- इसकी 685 भिन्न प्रजातियां है जोकि वर्षा ऋतु व ग्रीष्म ऋतु में अलग अलग जगहों पर उगाई की जाती हैं। इनमे से कुछ प्रजापति इस प्रकार है;

छोटी चौलाई– यह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा विकसित किया गया है जो छोटे आकार के सीधे बढ़ने वाले किस्म है और इसे ज्यादातर वसंत तथा बरसात में उगाया जाता है।

बड़ी चौलाई– यह भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है जिसकी पत्तियाँ बङी और तने मोटे, मुलायम होते हैं और इसे ज्यादातर ग्रीष्म ऋतु में उगाया जाता है।

मोरपंखी– यह बरसात के मौसम में उगने वाली किस्म है जिसकी पत्तियाँ मुलायम हरे और लाल रंग की होती है और इसका फूल बहुत सुंदर होता है जिस वजह से इसे सजावट के रूप में गमलों में भी लगाया जाता है।

पूसा कीर्ति– इसकी पत्तियाँ 6-8 सेंटीमीटर लम्बी और 4-6 सेंटीमीटर चौड़ा, डंठल 3-4 सेंटीमीटर लम्बा होता है और इसे ग्रीष्म ऋतु में उगाया जाता है।

पूसा लाल चौलाई– यह भी भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया है जिसकी पत्तियाँ लाल रंग की 7.5 सेंटीमीटर लंबा, 6.5 सेंटीमीटर चौड़ा और डंठल की लंबाई 4 सेंटीमीटर होती है।

पूसा किरण– यह बरसात के मौसम में उगने वाली किस्म है।

जलवायु:- यह फसल अधिक गर्मियों व वर्षा ऋतु के मौसम में उगाई जाती है। गर्म मौसम में इसके विकास, वृद्धि एवं उत्पादन के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं ।

यह फसल अधिक गर्मियों व वर्षा ऋतु के मौसम में उगाई जाती है। गर्म मौसम में इसके विकास, वृद्धि एवं उत्पादन के लिए सर्वोत्तम माने जाते हैं
चौलाई की खेती

मिट्टी:- वैसे इसकी खेती के लगभग सभी प्रकार की भूमि में पैदा की जा सकती है लेकिन जल निकास वाली रेतीली दोमट और दोमट मिट्टी जिसका पी.एच. मान 6.0-7.0 के बीच हो उपयुक्त रहती है। क्षारीय व अम्लीय मिट्टी में इसकी खेती नहीं होती है।

खेत की तैयारी:- खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई फिर 2 जुताई हैरो या कल्टीवेटर से कर ले और उसके बाद पाटा लगाएं। इसके बाद मेड़े करके छोटे – छोटी क्यारियां बनाए और उसके बीच में सिंचाई नालियां बनाए जिससे बाद में सिंचाई करने में सुविधा हो।

बुवाई:- उत्तरी भारत में इसकी बुवाई 2 बार की जा सकती है जिसमे पहली बुवाई फरवरी-मध्य मार्च तक और दूसरी बुवाई जुलाई में की जाती है। केरल और तमिलनाडु में पहले पौधे को तैयार कर उसके बाद खेतों में रोपा जाता है।

सिंचाई:- इसकी सिचाई मौसम के अनुसार की जाती है। ग्रीष्मकालीन फसल में सिंचाई 5 – 6 दिन के अंतर पर और वर्षा ऋतु की सिंचाई वर्षा न होने पर खेत में नमी बनाए रखने के लिए करनी चाहिए। ध्यान रखे की खेत में जल निकासी प्रबंध हो जिससे खेत में पानी जमा न हो।

खाद एवं उर्वरक:- अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए खेत में मिट्टी की जांच करवाने के बाद खेत में जरुरी खाद एवं उर्वरक डाले। अगर खेत की जांच नही होती है तो प्रति हेक्टर 10 -15 टन गोबर, 50 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फॉस्फोरस, 20 किलो पोटाश डाले।

खरपतवार नियंत्रण:- चौलाई की खेती के साथ कई खरपतवार और कीट व रोग लग जाते है जो फसल जो उपज को नुक्सान पंहुचा सकते है इसलिए खरपतवारों को निराई-गुड़ाई करके निकाल दे और कीट एवं रोग के लिए उपयुक्त उपचार करे।

तुड़ाई:- फसल की कटाई बुवाई के 20 -25 दिन बाद से ही शुरू किया जा सकता है। चौलाई को उसके कोमल तनों की शाखाओं को ही तोड़ना चाहिए। किसी भी किस्म की चौलाई की 5 -6 तोड़ाई आराम से की जा सकती हैं।

फसलबाज़ार

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