मखाना की खेती, फायदे एवं व्यापारिक लाभ।

मखाना का नाम आखिर किसने नहीं सुना है? भारत में मखाने की खीर और नमकीन को बड़े चाव से खाया जाता है, आख़िरकार ये स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहतमंद भी है। तो आईये जानते है, कैसे होती है मखाने की खेती और इसके पैदावार एवं व्यापारिक लाभ के बारे में।

परिचय:- मखाना का नाम आखिर किसने नहीं सुना है? भारत में मखाने की खीर और नमकीन को बड़े चाव से खाया जाता है, आख़िरकार ये स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहतमंद भी है। तो आईये जानते है, कैसे होती है मखाने की खेती और इसके पैदावार एवं व्यापारिक लाभ के बारे में।

मखाना की खेती जलीय जगहो में जैसे की तालाबों, कीचड़, गोखुर झील, गढ्ढे और ताल में होती है। भारत में मखाना की खेती लग-भग 80-90% बिहार से होती है, लेकिन मणिपुर, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, असम में भी इसकी खेती की जाती है।

मखाना की खेती जलीय जगहो में जैसे की तालाबों, कीचड़, गोखुर झील, गढ्ढे और ताल में होता है। भारत में मखाना की खेती लगभग 80-90% बिहार से होती है, लेकिन मणिपुर, पश्चिम बंगाल, ओड़िशा, असम में भी इसकी खेती की जाती है।
मखाना

बिहार में सबसे अधिक मखाना की खेती दरभंगा और मधुबनी में होती है। नयी तरीको से इसकी खेती अन्य राज्यों में भी की जाती है।

फायदे:- मखाना में प्रोटीन, एंटीऑक्सीडेंट, आयरन, फाइबर, फोलिक एसिड, जिंक और कैल्शियम की मात्रा बहुत अधिक होती है, और सोडियम, कैलोरी और फैट बहुत कम मात्रा में होती है।

मखाना खाने से पेट की बीमारी, दिल की बीमारी, मधुमेह, जोड़ों के दर्द, किडनी, अनिद्र और तनाव की समस्या कम हो जाती है। मखाना खाने से पेट भी भरा रहता है जिस कारण से लोग उपवास के समय मखाना का भोग करते है।

मखाना की खेती:- मखाना की खेती जलीय जगहो में जैसे की तालाबों, कीचड़, गोखुर झील, गढ्ढे और ताल में होता है। अगर आपके पास ऐसा प्रबन्ध नही है तो आप खेत में भी पानी जमा कर के मखाने की खेती कर सकते है।

इसके लिए आप अपने खेत में 5-9 इंच पानी जमा कर के उसे तालाब का रूप दे सकते है, एवं इसमें मखाने का बीज रोप सकते है।

तालाब विधि:- अगर आप ऐसे तालाब में मखाना की खेती करते है, जिसमे पहले भी इसकी खेती हो चुकी है तो आपको उसमें बीज डालने की भी जरुरत नही होगी क्योंकि पहले की हुई खेती से कुछ बीज तालाब में ही रह जाते है जो दूसरी बार की खेती में बीज के रूप में काम आ जाते है।

सीधी बुआई:- इस तरीके में हमें दिसंबर के महीने में 30-90 किलो मखाने के बीज को तालाब में हाथो से छिटना है । इसके 35-40 दिन बाद बीज तालाब में उगाना शुरू कर देता है और शुरूआती मार्च तक पानी के ऊपर के सतह पर आ जाते है।

ऐसे समय में दो पंक्ति और दो पौधे के बीच 1*1 की दूरी रखने के लिए कुछ पौधे को तालाब से बाहर निकाल दिया जाता है।

खेत प्रणाली:- यह मखाना की खेती करने क नया तरीका है। इसमें खेत में किसान 1 फीट पानी भर के मखाना की खेती करते है, और साथ में अन्य फसल की भी खेती की जाती है।

इस तरीके में पौधे की रोपाई फरबरी से मार्च के अंत तक की जाती है। इस तरीके से फल 4 महीने में ही तैयार हो जाता है।

नर्सरी:- मखाना के लिए कार्बोनिक प्रदार्थ वाली युक्त क्ले मिट्टी अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह मिटटी पानी संग्रहित कर लेती है जिस कारण से इसमें मखाने के पौधे का अच्छा विकास होता है।

खेत की 2-3 बार गहरी जुताई कर दे और रासायनिक खाद में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम को 100:60:40 किलो प्रति हेक्टर के हिसाब से दे। इसके बाद खेत के चारो तरफ बाँध बना दे और खेत में बिचड़ा तैयार कर ले।

खेत तैयार होने के बाद दिसंबर में खेत में लगभग 1.5 फीट पानी भर के और बीज रोप देना चाहिए। उसमे 20 किलो मखाने के बीज छिड़क देना है। इसमें एंडोसल्फान के 0.2 घोल, 2 लीटर दवा और 1 लीटर पानी को छिड़क दे।

हमें यह ध्यान रखना है की खेत में दिसंबर तक पानी का स्तर बना रहे। मार्च के अंत तक बिचड़ा रोपने के लिए तैयार हो जायेगा।

मखाना की सिंचाई एवं खाद और उर्वरक

खेत की तैयारी:- जिस तरीके से नर्सरी तैयार किया गया है, उसी प्रकार मखाना का खेत भी तैयार किया जाता है। इसमें बस बीज की जगह बिचड़ा रोपना है।

खाद और उर्वरक:- वैसे तो जब मखाने की खेती उसके वातावरण के अनुसार तालाब में में होती है तो हमें उसमें खाद डालने की जरुरत नही पड़ती है। लेकिन इसकी खेती खेत में करते समय खाद और उर्वरक का बहुत ध्यान रखना पड़ता है।

खेत में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम को 100:60:40 किलो प्रति हेक्टर और 15 टन कार्बनिक प्रति हेक्टर के हिसाब से और अकार्बनिक उर्वरक दे देना चाहिए।

मखाने की खेती के शुरुआत में खरपतवार का खतरा बढ़ जाता है, तो हमें उससे निकालते रहना चाहिए। पौधा रोपने के 30-40 दिन बाद उसके पत्ते तेजी से बढ़ते है और खरपतवार कम हो जाते है।
मखाना की खेती

रोपाई विधि:- दो पंक्तियों के बीच की दूरी 1.20 मीटर और दो पौधे के बीच की दूरी 1.25 मीटर ध्यान में रखते हुए, हमें फरवरी-अप्रैल के महीने तक नई पौधे को रोपना है।

पौधा रोपने के 2 महीने बाद उस पर बैंगनी रंग के फूल आने लगते है और फूल आने के 35-45 दिन बाद उस पर विकसित फल आने लगते है।

सिंचाई:- चूँकि मखाना जलीय पौधा है, इसे पानी की बहुत ज्यादा जरुरत होती है। किसानों को यह ध्यान में रखना होगा कि तालाब या खेत में पानी का स्तर बना रहे।

वैसे तो मानसून की वर्षा का पानी खेती के लिए काफी है लेकिन असामान्य वर्षा में खेत में 4-5 बार सिंचाई कर देनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण:- मखाने की खेती के शुरुआत में खरपतवार का खतरा बढ़ जाता है, तो हमें उससे निकालते रहना चाहिए। पौधा रोपने के 30-40 दिन बाद उसके पत्ते तेजी से बढ़ते है और खरपतवार कम हो जाते है।

समेकित खेती प्रबंध के कारण जब किसान मछली पकड़ने के लिए जाल डालते है तो उससे भी खरपतवार कम होता है।

फूल और फल का आना:- मखाने के पौधे पर फल और फूल एक साथ नही आते। पौधे पे फल और फूल का आना मई में शुरू होता है जो नवंबर तक चलता है।

पौधा रोपने के 2 महीने बाद उस पर बैंगनी रंग के फूल आने लगते है और फूल आने के 35-45 दिन बाद उस पर विकसित फल आने लगते है, मखाना के सभी भाग कांटो से भरे होते है।

सितम्बर तक पूरी तरह से पक जाने के बाद फल फटने शुरू कर देता है और फिर गुद्देदार फल पानी के ऊपरी स्तर पर तैरने लगते है और 2-4 दिन बाद पानी के निचले स्तर पर जमा होने लगते है।

फसल की कटाई:- सितम्बर के अंत से अक्टूबर के शुरुआत में किसान एक औजार जिसे गंजा कहा जाता है, उसकी सहायता से पानी के 5-30 सेंटीमीटर की गहराई में जमी हुयी फलो को बाहर निकाल के जमा करते है और बाकि के बीज अगली खेती के लिए बीज का काम करती है। फसल को इकठ्ठा करने का शिल-शिला अगस्त से अक्टूबर तक चलता रहता है।

फसलबाज़ार

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