परिचय:- मुलेठी को सदाबहार झाड़ीनुमा पौधे की श्रेणी में रखा जाता है। इसे यष्टिमधु, मुलहटी अथवा मुलेठी के नाम से जाना जाता है। इसमें गुलाबी, जामुनी रंग के फूल तथा फल लंबे व चपटे होते हैं। यह एक सर्वसुलभ औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी है।
सामान्यतः मुलेठी ऊँचाई वाले स्थान जैसे जम्मूकश्मीर, देहरादून, सहारनपुर तक उगाई जाती है। वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों से अब इसे हिमालय के तराई वाले सुष्क क्षेत्रों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।
इसकी खेती करना अब आसान एवं किफ़ायती हो गया है। इसकी खेती के लिए राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड द्वारा किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान भी दिया जाता है।
जलवायु एवं मिट्टी:- खेती के लिए रेतीली-चिकनी मिट्टी उत्तम होती है। भारत के उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्र की उष्ण कटिबंधीय जलवायु उपयुक्त है।
औषधीय गुण:- इसे खांसी, गले की खरास, श्वसन नली की सूजन तथा मिरगी आदि, में इसका उपयोग किया जाता है। यह आँखों के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यह शरीर के अंदरूनी चोट में भी अत्यंत लाभदायक होता है। भारत में इसे पान में डालकर भी उपयोग किया जाता है। यह गले के लिए भी उत्तम है।
बिजाई का समय:- इसकी बुआई के लिए जनवरी-फरवरी का मौसम उत्तम है। इस मौसम में नर्सरी की तैयारी कर सकते हैं। आप फरवरी-मार्च अथवा जुलाई-अगस्त माह में बिजाई कर सकते हैं।
खेत की तैयारी:- इसकी खेती करने के लिए खेतों को अच्छी तरह से समतल करना बहुत जरूरी है। अतः मिट्टी को नरम होने तक जोतें इसके लिए 3-4 जुताई पर्याप्त है।
खरपतवार फसक को नुकसान पहुँचा सकता है अतः जुताई के समय इसे अच्छे से हटा दें। मिट्टी में पानी ना खड़ा हो, इसके लिए जल निकाश की उत्तम व्यवस्था करनी चाहिए।
पौधे का प्रत्यारोपण:- रोपाई का फासला 90×45 सैं.मी. तक रखना उत्तम है। बिजाई सीधे या पनीरी लगाकर कर सकते हैं।
बीज में अन्तर प्रजातियों की फसलें जैसे गाजर, आलू बंद गोभी आदि लगाया जा सकता है। काटे गये टुकड़े के अंकुरित होने तक कुछ समय के अंतराल पे, हल्की सिंचाई करते रहें।
मुलेठी की सिंचाई, कटाई एवं अनुदान।
सिंचाई:- गर्मियों के मौसम 30-45 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जरूरत होती है। जबकि सर्दियों में सिंचाई की खास जरूरत नहीं होती।
कटाई:- ढ़ाई से तीन साल बाद पौधा से उपज शुरू हो जाती है। नवंबर से दिसंबर में महीने में कटाई कर सकते हैं। कटाई के बाद जड़ों को धूप में सुखाना आवश्यक है। जड़ों को हवा रहित बैग में डाला देना उचित है। सूखी जड़ों को चाय, पाउडर आदि के रूप में प्रयोग की जा सकती हैं।
अनुदान:- सार्वजनिक क्षेत्र में कृषि हेतु।
आदर्श पौधशाला (4 हेक्टेयर):- इसकी अनुमानित लागत 25 लाख रुपय है । जिसमें सरकार की तरफ से अधिकतम 25 लाख तक की राशि प्रदान की जाती है।
लघु पौधशाला(1 हेक्टेयर):- लागत 6.25 लाख, सहायता राशि अधिकतम 6.25 लाख।
निजी क्षेत्र में खेती हेतु।
आदर्श पौधशाला:- लागत का 50%, सहायता हेतु।
लघु पौधशाला:- लागत का 50% सहायता हेतु।
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