परिचय:- अश्वगंधा या असगंधा का वानस्पतिक नाम वीथानीयां सोमनीफेरा है। यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल है साथ ही यह नकदी फसल भी है। यह पौधा ठंडे स्थानों को छोड़कर अन्य सभी स्थानों में पाया जाता है। मुख्य रूप से इसकी खेती मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग व निकटवर्ती राज्य राजस्थान में होती है।
राजस्थान के नागौरी जिले का अश्वगंधा की बाजार में एक अलग पहचान है। इस समय देश में अश्वगंधा का कुल उत्पादन 1600 टन प्रति वर्ष है जबकि इसकी मांग 7000 टन प्रति वर्ष है। यह एक बहुवर्षीय पौधा है। यह मध्यम लंबाई का पौधा है, इसकी लंबाई 40 cm से 150 cm तक होती है।
भूमि एवं जलवायु:- अश्वगंधा खरीफ फसल है जो गर्मी के मौसम में वर्षा शुरू होने के समय लगाया जाता है। अच्छी फसल के लिए जमीन में अच्छी नमी के साथ मौसम शुष्क होना चाहिए। यह सिंचित व असिंचित दोनों दशाओं में उगाई जा सकती है।
रबी के मौसम में यदि वर्षा हो तो फसल में गुणात्मक सुधार होता है। इसकी खेती सभी प्रकार की जमीन में की जा सकती है। इसकी खेती लवणीय पानी से भी की जा सकती है। खेती अपेक्षाकृत कम उपजाऊ तथा असिंचित भूमियों में करना उचित है।
जहाँ पर अन्य लाभदायक फसलें लेना सम्भव न हो या कठिन हो वहाँ इसकी खेती लाभदायक है। भूमि में जल निकास की अच्छी व्यवस्था के साथ शुष्क मौसम होना अनिवार्य है।
भूमि की तैयारी व बुआई:- वर्षा होने से पहले खेत की 2-3 बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरी बना दें। बुआई के समय वर्षा न हो रही हो तथा पर्याप्त नमी हो। वर्षा पर आधारित फसल छिटकवां विधि से भी बोया जा सकता है।
सिचिंत फसल के बीज को पंक्ति से पंक्ति 30 से. मी. व पौधे से पौधे की दूरी 5-10 से. मी. रखनी चाहिए। बुआई के बाद बीज को मिट्टी से ढक दें। अश्वगंधा की फसल सीधे खेत में बीज द्वारा या नर्सरी द्वारा रोपण करके उगाया जा सकता है। नर्सरी तैयार करने के लिए जून-जुलाई में बिजाई करनी आवश्यक है।
उर्वरक व निराई-गुड़ाई:- अश्वगंधा की फसल में रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करें। क्योंकि इसका प्रयोग औषधि निर्माण में किया जाता है। लेकिन बुआई से पहले उचित मात्रा में नाईट्रोजन देने से अधिक ऊपज मिलती है।
खेत में समय-समय पर खरपतवार निकालने हेतु गुड़ाई करनी चाहिए। अश्वगंधा जड़ वाली फसल है। समय-समय पर निराई-गुड़ाई करते रहने से जड़ को हवा मिलती रहती है, जिसका उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
सिंचाई:- सिंचित अवस्था में खेती करने 15-20 दिनों के अंतराल पर दो बार सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद यदि वर्षा नियमित होती रहे तो पानी देने की आवश्यकता नही रहती। यदि वर्षा न हो तो महीने में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए।
अधिक वर्षा अथवा सिंचाई से फसल को हानि हो सकती है। 4 ई.सी. से 12 ई.सी. तक वाले खारे पानी से सिंचाई करने से पैदावार पर तो असर नही पड़ता परन्तु गुणवत्ता 2 से 2.5 गुणा बढ़ जाती है।
अश्वगंधा फसल की सुरक्षा एवं उपयोग।
फसल सुरक्षा:- जड़ों को निमेटोड के प्रकोप से बचाने के लिए फ्यूराडान बुआई के समय खेत में मिला देना चाहिए। पत्ती की सड़न और लीफ स्पाट इसकी सामान्य बीमारियां हैं। जो खेत में पौधों की संख्या में कमी कर देती हैं। अतः बीज को उपचारित करके बोना चाहिए।
खुदाई एवं सुखाई:- अश्वगंधा की फसल 140 से 150 दिनों में खुदाई के लिए तैयार हो जाती है। पौधे की पत्तियां व फल जब पीले हो जाए तो फसल खुदाई करनी चाहिए।
पौधे को जड़ समेत उखाड़ने के लिए पौधों को उचित गहराई तक खोदें। बाद में जड़ों को पौधो से काट कर अच्छे से धो कर धूप में सूखने दें। जड़ों की छंटाई उनकी आकृति के अनुसार करनी चाहिए।
ए श्रेणी – जड़ें 7 सें. मी. लम्बी व 1-1.5 सें. मी. व्यास वाली भरी हुई चमकदार और पूरी तरह से सफेद।
बी श्रेणी – 5 सें. मी. लम्बी व 1 सें. मी. व्यास वाली ठोस चमकदार व सफेद।
सी श्रेणी – 3-4 सें. मी. लम्बी, व्यास 1 सें. मी. वाली तथा ठोस संरचना वाली जड़ें।
डी श्रेणी – कटी-फटी, पतली, छोटी व पीले रंग की जड़ें।
भंडारण:- जड़ो को जूट के बोरों में भरें तथा हवादार जगह पर भडांरण करें। भडांरण की जगह पे दीमक न हो। इन्हें एक वर्ष तक गुणवत्ता सहित रखा जा सकता है।
उपज:- आमतौर पर एक हैक्टर से 6 से 8 कुंतल ताजा जड़ें सूखने पर 3-5 क्विंटल रह जाती है। इससे 50 से 60 किलोग्राम बीज प्राप्त होता है।
मण्डी:- नीमच मण्डी (मघ्य प्रदेश), अमृतसर (पंजाब), खारी बावली (दिल्ली), पंचकूला (हरियाणा), सीतामढ़ी (बिहार)।
उपयोग
विथेफेरिन – यह टयूमर में सहायक है।
विथेफेरिन-ए – यह जीवाणु प्रतिरोधक ।
विथेनीन – यह उपशामक व निद्रादायक होती है।
इसके अलावा अश्वगंधा का प्रयोग अनेक आयुर्वेद औषधि के निर्माण में किया जाता है।
जड़ों का उपयोग:- जड़ों से आयुर्वेदिक तथा यूनानी दवाइयां बनाई जाती हैं। जड़ों का उपयोग गठिया रोग, त्वचा की बीमारियां, फेफड़े में सूजन, पेट के फोड़ों तथा मंदाग्निका के उपचार में किया जाता है। इसकी जड़ों का उपयोग कमर व कूल्हों के दर्द निवारण हेतु भी किया जाता है।
पत्तियों का उपयोग:- पत्तियों का उपयोग पेट के कीड़े मारने और गर्म पत्तियों से दुखती आँखों का इलाज किया जाता है। हरी पत्तियों का लेप घुटनों की सूजन तथा टी.बी. के इलाज के लिए किया जाता है। इसका प्रयोग रुके हुए पेशाब में भी लाभदायक है।
इसकी बढ़ती मांग को देखते हुए इसके उत्पादन में अपार संभावनाये हैं। इससे शुद्ध लाभ 50-70 हजार प्रति हेक्टेयर है।
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Fasal bajar se bahut se logo ko achi jankari prapt hoti hai
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