परिचय:- पत्ता गोभी रबी मौसम की एक बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जी है। पत्तेदार होने के कारण हरी सब्जियों में यह उत्तम माना जाता है। इसे पका कर तथा कच्चे रूप में भी इस्तेमाल में लाया जाता है। यह पुर्तगालीयों द्वारा भारत में लाया गया है। इसे बन्धा तथा बंद गोभी के नाम से भी जाना जाता है। इसमें पौष्टिक तत्वों की भरपूर मात्रा होती है।
जलवायु:- बंद गोभी की अच्छी पैदावार के लिए ठंडी तथा आद्र जलवायु आवश्यक होती है। इसमें पाले को सहने की भी विशेष क्षमता होती है।
बंद गोभी के बीज के अंकुरण के लिए 27- 30 डिग्री सेल्सियस तापमान अच्छा होता है। पहाड़ी क्षेत्रों में अधिक ठण्ड पड़ने के कारण इसकी बसंत और ग्रीष्म कालीन में दो फसलें की जाती है।
खेत की तैयारी:- इसकी खेती लगभग सभी प्रकार की अच्छी जल निकासी वाली भूमियों में की जा सकती है। अगेती फसल के लिए रेतीली दोमट भूमि जबकि पछेती और अधिक उपज लेने के लिए भारी भूमि तथा दोमट भूमि उपयुक्त रहती है।
जिसका पी.एच. मान 5.5 से 7.5 हो। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें तीन चार जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके पाटा चलाकर जमीन को भुरभुरा तथा समतल बना लें।
पत्ता गोभी की किस्मे:- पत्ता गोभी की अगेती प्रजातियां प्राइड आफ इंडिया, गोल्डन एकर, अर्लीडम्प हेड एवं मीनाक्षी आदि हैं।
पिछेती प्रजातिया लेट ड्रम हेड, डेनिश वाल हेड, मुक्ता, पूसा ड्रम हेड, रेड कैबेज, पूसा हिट टायड, कोपेनहेगनमार्किट आदि हैं।
बुआई का समय एवं मात्रा:- बीज की मात्रा 500 ग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। बीज की बुआई से पहले बीज को कैप्टान या वैसीकाल से शोधित करना चाहिए, बीज अच्छे नर्सरी से लें।
पौधरोपण:- पत्ता गोभी की रोपाई मौसम एवं प्रजातियों को ध्यान में रख कर की जाती है। अगेती प्रजातियों की रोपाई पंक्तियों में की जाती है। पौधे से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति दोनों की ही दूरी 45 सेंटीमीटर रखना उचित माना जाता है।
पत्ता गोभी की सिंचाई, पैदावार एवं रोग प्रबंधन।
सिंचाई प्रबंधन:- लगातार और आवश्यक नमी बनाय रखने के लिए सिंचाई बीज बुआई के तुरंत बाद हीं शुरु कर दी जाती है। तथा हर 7 से 8 दिन के अंतराल में इसकी सिंचाई करती रहनी चाहिए फसल तैयार होने के बाद सिंचाई कम कर देनी चाहिए।
खाद प्रबंधन:- पत्ता गोभी की अच्छी उत्पादन के लिए लगभग 40 क्विंटल गोबर की सड़ी हुई खाद प्रति हेक्टेयर जुताई के साथ दें, ऑर्गनिक खाद के रूप में।
भू-पावर– 50 kg , माइक्रो फर्टीसिटी कम्पोस्ट– 40 kg, माइक्रो नीम– 20 kg, सुपर गोल्ड कैल्सी फर्ट– 10 kg , माइक्रो भू-पावर– 10 kg और 50 kg अरंडी की खली को एक साथ मिलाकर खेत में बुआई से पहले बिखेर कर खेत की जुताई कर दें उसके बाद हीं बुआई करे।
खरपतवार प्रबंधन:- रोपाई के बाद अच्छी तरह पौधे के खड़े हो जाने जाने के बाद, हर सिंचाई के बाद दो से तीन बार निराई, गुड़ाई करते रहें। जब पौधों में हेड बनना शुरू हो जाये तो पौधों पर मिट्टी चढ़ा दें। खरपतवार नियंत्रण के लिए रसायन के उपयोग से बचें।
रोग प्रबंधन:- इसके पौध में गलन डेम्पिंग आफ बीमारी लगती है, यह जन पीथियम नामक फफूंदी जनित रोग है। नियंत्रण हेतु बीज शोधन करके बोना चाहिए।
किट प्रबंधन:- पत्ता गोभी की फसल में मुख्य रूप से मांहू एफिड्स नामक किट लगते है। बचाव हेतु रसायनो का प्रयोग करे जैसे की डायमिथोएट 30 ई.सी.एवं मिथायल आक्सीडेमेटान 25 ई.सी.।
कटाई:- पत्ता गोभी की गांठे जब पक कर कड़ी लगने लगे, तथा ऊपर के पत्ते पीले दिखने लगे तो कटाई कर लें।
पैदावार:- अगेती प्रजातियों की पैदावार 300 से 350 तथा पिछेती प्रजातियों की पैदावार 350 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक पाई जा सकती है। जिससे अच्छी लाभ ली जा सकती है।
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