शलजम की खेती, व्यापारिक महत्व तथा पैदावार।

शलजम शरद-ऋतु की फसल है। शलजम भारत में उगाई जाने वाली लोकप्रिय सब्जियों में से एक है। इसकी फसल को लगभग सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। ठण्डी जलवायु में इस फसल को उगाया जाता है, यह ठन्ड व पाले सहन करने में सक्षम है।

परिचय:- शलजम शरद-ऋतु की फसल है। शलजम भारत में उगाई जाने वाली लोकप्रिय सब्जियों में से एक है। इसकी फसल को लगभग सभी प्रकार की भूमि में उगाया जा सकता है। ठण्डी जलवायु में इस फसल को उगाया जाता है, यह ठन्ड व पाले सहन करने में सक्षम है। अच्छी बढ़वार के लिये ठन्ड व आर्द्रता वाली जलवायु सर्वोत्तम रहती है। पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी पैदावार अधिक मिलती है।

भूमि व जलवायु:- अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हल्की चिकनी दोमट अथवा बलुई दोमट मिट्टी अति उत्तम मानी जाती है। भूमी अच्छी जल निकास वाली अथवा भूमि उपजाऊ होनी चाहिए।

अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए हल्की चिकनी दोमट अथवा बलुई दोमट मिट्टी अति उत्तम मानी जाती है। भूमी अच्छी जल निकास वाली अथवा भूमि उपजाऊ होनी चाहिए।
शलजम

खेत की तैयारी:- खेत जुताई मूली की फसल की तरह करनी चाहिए। घास व ठूंठ आदि को बाहर निकाल कर जला दें। भूमि को बिल्कुल भुरभुरा करें तथा छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर इसकी बुआई करें।

शलजम की उन्नतशील किस्में

लाल – 4 जड़ें गोल, लाल तथा मध्यम आकार की होती हैं जो 60 दिन में तैयार हो जाती है।

सफेद – 4 50-55 दिन में तैयार होती है, यह वर्षाऋतु की किस्म है। उपज 200 कुंतल प्रति
हेक्टेयर मिलती है।

परपल-टोप, पूसा-स्वर्णिमा, पूसा-चन्द्रिमा, पूसा कंचन पूसा-स्वेत, स्नोवाल कुछ अन्य प्रजातियाँ हैं।

बीज की मात्रा एवं बुवाई का समय:- औसतन 4 किलो बीज प्रति हेक्टेयर लेनी चाहिए जिसमें अंकुरण की 90-95% क्षमता हो। किस्मों का ध्यान रखें। जुलाई-नवम्बर तक इसकी बुआई की जाती है।

अगेती, मध्य तथा पिछेती किस्मों को समय के निश्चय अंतराल पे बोना चाहिए। बुआई कतारों में करें। कतारों से कतारों की दूरी 30 सेमी.,तथा पौधा से पौधों की 10-15 सेमी. रखें।

शलजम की सिंचाई, खरपतवार नियन्त्रण एवं फसल-सुरक्षा।

खाद एंव उर्वरक:- शलजम की फसल के लिए सड़ी गोबर की खाद मिटटी में मिलायें। तथा उर्वरक में औसतन – 80 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस तथा 50 किलो पोटाश प्रति हैक्टर प्रयोग करें।

शलजम की फसल के लिए सड़ी गोबर की खाद मिटटी में मिलायें। तथा उर्वरक में औसतन - 80 किलो नाइट्रोजन, 50 किलो फास्फोरस तथा 50 किलो पोटाश प्रति हैक्टर प्रयोग करें।
शलजम

325 किलो यूरिया, 310 किलो सिंगल सुपर फास्फेट तथा 82 किलो म्यूरेट आफ पोटाश प्रति हैक्टर लें। 160 किलो यूरिया फास्फेट तथा पोटाश को अच्छे से मिला कर बुआई से 15 दिन पहले खेत में मिलाएं।

बचे हुए यूरिया को दो भागों में बाँटे दूसरी बार बुआई से 15-20 दिन बाद सिंचाई के 4-5 दिन बाद तथा तीसरी बार बोने से 35-40 दिन के बाद खड़ी फसल में दें। इस प्रकार से फसल की बढ़वार अधिक होती है।

सिंचाई:- बुआई की समय नमी बनाये रखें इस समय खेत में नमी अवश्य होनी चाहिए। यदि खेत सूखा हो तो पलेवा करें। बुआई से 15-18 दिन बाद प्रथम सिंचाई, अन्य सिंचाई नमी के अनुसार करते रहें।

खरपतवार नियन्त्रण:- शलजम की फसल में खरपतवार नियंत्रण आवश्यक है, इनके लिए समय-समय पर निदाई-गुड़ाई आवश्यक है। यूरिया की दूसरी मात्रा देने से पहले जड़ों पर मिट्‌टी चढ़ा दें।

फसल-सुरक्षा:- अमूमन शलजम की फसल में कीट व रोग नहीं लगते, लेकिन पछेती फसल में कीट व रोग लग जाते हैं।

कीट – एफिडस तथा पत्ती काटने वाला कीड़ा। इन दोनों के लिए मेटासिस्टमस या मेलाथियान 2 मिली. दवा एक लीटर पानी में घोलकर छिड़क दें।

कटाई:- कटाई आवश्यकतानुसार समय-समय पर करते हैं। 20-25 दिन की फसल की पत्तियों के लिए उखाड़ लेते हैं तथा जड़ों के लिये आकार बढ़ने पर खोदते हैं।

खुदाई खुरपी या फावड़े से करें तथा जड़ें कट न पायें। जड़ों को धोकर तथा साफ करके उपयोग करें। इसके पत्तों तथा जड़ों दोनों को उपयोग किया जाता है।

फसलबाज़ार

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