स्वीट कॉर्न की जैविक फसल:- हम बात कर रहे हैं सिद्धार्थ चिचौंदिया की, जिन्होंने एम.बी.ए. के बाद नौकरी के बजाय खेती को अपना करियर चुना और खेती करने में रुझान दिखाया।
सिद्धार्थ मध्यप्रदेश के सागर के पम्बोरी, रइगाँव के रहने वाले हैं। ये सागर जिले से करीब पाँच किमी की दुरी पर है। सिद्धार्थ के पिताजी खेती करते थे लेकिन वो खेती करना नहीं चाहते थे।
कारण बस ये था की पारंपरिक खेती जिसमें पिताजी संलग्न थे, इसमें खर्चा अधिक और फायदा कम था।
प्रारंभ:- सिद्धार्थ ने पहली बार 2016 में करीब आधा एकर खेत से जैविक खेती की शुरूआत की। पहले उसने इतने ही ज़मीन पर पारंपरिक फसलें (गेहूँ, और सोयाबीन) के बजाए अदरक और स्वीट कॉर्न की बुआई कर दी।
उसनें पहले ही वर्ष इंटरक्रोपिंग तकनीक को अपनाया। इसके तहत उसनें अदरक की बुआई की और अगले हीं दिन स्वीटकॉर्न की बुआई कर दी।
सिद्धार्थ ने बताया की बुआई से पहले जुताई करके 3 ट्रॉला गोबर की खाद डाल कर 1 ट्रॉला कंपोज्ड मिलाया था। पहली बार खेती में उन्हें कुल खर्चा 55000 रुपए लगा। स्वीटकॉर्न 2 महीनें में तैयार हो गया और उससे 13000 रुपये की आमदनी हुई।
6 महीने बाद जब अदरक तैयार हो चुकी थी। बाजार में भाव सिर्फ 35 रुपये होने के कारण सिद्धार्थ ने खुदाई नहीं की और उसमें ककड़ी की बुआई कर दी।
ककड़ी फसल लेने के बाद जब अदरक की खुदाई की तो 50 कुंतल अदरक प्राप्त की गई। उस वक्त बाजार में इसकी कीमत 40 रुपये प्रति किग्रा ज्ञात की गई और तकरीबन 2 लाख की बिक्री की गई। कुल शुद्ध बचत 1 लाख 58 हज़ार की हुयी।
देर से खुदाई करने के कारण उन्हें कीमत भी अच्छी मिली और करीब-करीब 6 कुंतल अधिक अदरक भी प्राप्त किया गया। वहीँ वो अदरक के भंडारण से भी बच गए।
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