परिचय:- अदरक मुख्यतः मसाले के रूप में प्रयोग किया जाता है। जो हमारे भोजन में जायका बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अदरक में अनेक औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। अदरक वाली चाय तो सबसे लोकप्रिय है।
भारत अदरक उत्पादन में विश्व के अग्रणी देशों में एक है। यूँ तो भारत के सभी राज्यों में अदरक की खेती की जाती है, लेकिन केरल और मेघालय प्रमुख राज्य हैं। यह मुख्य रूप से उष्ण क्षेत्र की फसल है। इसकी उत्पत्ति दक्षिण पूर्व एशिया में मानी जाती है।
खेती योग्य जलवायु एवं मिट्टी:- अदरक की खेती गर्म और नमीयुक्त जलवायु में की जाती है। इसकी खेती वर्षा आधरित भी और सिंचाई करके भी की जाती है। इस फसल की अच्छी खेती के लिए बुआई से अंकुरण तक मध्यम और वृद्धि तक अधिक वर्षा की आवस्यकता होती है। खुदाई से 1 महीने पहले शुष्क वातावरण अति आवश्यक है। इसके लिए उपयुक्त मिट्टी है बलुई, लाल,चिकनी। इसकी फसल किसी खेत में लगातार नहीं बोनी चाहिए।
मौसम:- भारत के पश्चिम तट में अदरक वर्षा आधारित खेती के लिए बुआई मई महीनें के प्रथम 15 दिनों में करनी चाहिए। वहीं सिंचाई आधारित खेती में बुआई फरबरी के मध्य से मार्च के प्रारंभ में करनी चाहिए। बुआई से पहले मिट्टी की ऊपरी सतह पर पत्तों को जलाते हैं। जिससे रोगों में कमी आती है, और उपज अच्छी होती है।
खेती हेतु भूमि की तैयारी, बुआई एवं भंडारण।
खेती हेतु भूमि की तैयारी:- पहले वर्षा के बाद भूमि को 4 से 5 बार जोतना चाहिए। फिर बडों को तैयार की जाती है जिसे जमीन से 15 cm ऊँचा रखा जाना चाहिए। 2 बडों के बीच 50 सेमी की दूरी अनिवार्य है। वहीं सिंचाई आधारित खेती में बडों की ऊँचाई 40 सेमी ऊँची रखी जाती है।
बुआई:- अदरक का बीज प्रकंद होता है। प्रकंद को छोटे-छोटे टुकड़े करके बीज बनाया जाता है। बीजों की दर खेती के लिए अपनाये गए तरीके के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों के लिए अलग-अलग होती है। अदरक की फसल मिश्रित फसल के रूप में भी की जाती है। लेकिन ध्यान रहे इसकी फसल टमाटर, आलू ,मिर्च ,बैंगन और मूँगफली आदि के साथ नहीं करनी चाहिय।
जैविक उत्पादन:- जैविक उत्पादन के लिए परंपरागत प्रजातियों को अपनाया जाता है, जो उपयुक्त जलवायु में रोगों से बचाव करने में समर्थ हों।
खुदाई:- बुआई के आठ महीनें बाद इसकी खुदाई की जाती है जब पत्ते पीले पर जाते हैं।
भंडारण:- अच्छे बीज बनाने के लिए प्रकंदों को छायादार जगह गड्ढे बनाकर उसमें रखा जाता है।
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