परिचय:- अरण्डी औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके तेल का उपयोग अनेक बीमारियों में अचूक दवा के रूप में किया जाता है। अरण्डी का तना कीटनाशक बनाने के काम में आता है।
इसके पत्तों तथा जड़ों का दवाओं के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। मिश्रित फसल की बुआई में अरण्डी के नीचे वाली फसल को सिंचाई की आव्यशकता नहीं होती है।
मुख्य प्रजातियाँ:- 47 – 1 ज्वाला, ज्योति, क्रांति किरण, हरिता, जीसी -2, टीएमवि -6, किस्में तथा डीसीएच – 519, डीसीएच- 177, डीसीएच – 32, जी.सी.एच -4, जी.सी.एच -5, 6, 7 आदी अरण्डी कुछ महत्वपूर्ण किस्में हैं।
फसल चक्र:- खेत में फसल बदल–बदल कर लगाने से खेतों की गुणवत्ता बनी रहती है तथा पैदावार अच्छी होती है।
फसल चक्र के तरह अपनाई जाने वाली फसल:- अरण्डी – मूंगफली, अरण्डी – सूरजमुखी, अरण्डी – बाजार, अरण्डी – रागी, अरण्डी – अरहर, अरंड – ज्वार, बाजरा – अरण्डी, ज्वार – अरण्डी, अरंड – मुंग, अरंड – तिल, अरंड- सूरजमुखी, सरसों – अरंड, अरंड – बाजरा – लोबिया आदी उत्तम मानी जाती है।
जुताई:- खेती के लिए मानसून आने से पहले मई के अंतिम सप्ताह में देशी हल से एक–दो जुताई कर के पाटा चलायें, जिससे सूर्य के तेज़ प्रकाश में मृदा का शोधन हो तथा बरसात का पानी समूचित रूप से।
रबी फसल की बुआई सितम्बर – अक्तूबर और गर्मी की फसल की बुआई जनवरी में करें।
बीजों की गुणवत्ता:- प्राधिकृत एजेंसी से हीं बीज खरीदें। बीज अच्छे संकर किस्मों के अच्छी उत्पादन देने के साथ–साथ रोग प्रतिरोधी होना चाहिए। इसके बीज को 4 से 5 वर्षों तक काम में लाया जा सकता है।
बीज मात्रा और दुरी:- बीजों कि दुरी बीजो के बुआई तथा आकार पर निर्भर करता है। वर्षा में 90 से 60 से.मी. और सिंचित फसल के लिए 120 से 60 सेमी की दुरी आदर्श है। वर्षा काल में खरीफ में बुआई में देरी हो, तब दुरी कम रखें। 10 – 15 किलोग्राम / हैक्टेयर बीज पर्याप्त है।
अरण्डी की बुआई की विधि एवं खरपतवार नियंत्रण।
बीजजोपचार:- बीजोपचार आवश्यक है इससे बीज का अंकुरण अधिक तथा रोगों का प्रभाव कम होता है। बीजोपचार थीरम या कैप्टन से 3 ग्राम / किलोग्राम या कर्बेन्डेलियम 2 ग्राम / किलोग्राम बीज की दर से करें।
बुआई की विधि:- देशी हल अथवा सीड ड्रिल से बीज की बुआई उचित नमी पर कर सकते हैं। बुआई से पहले 24 से 48 घंटे तक बीजों को भिगो कर रखे।
यदी मिट्टी लवणीय हो तो बुआई से पहले बीजों को 3 घंटे तक 1 प्रतिशत सोडियम क्लोराइड में भिगोंये।
खाद और उर्वरक का प्रयोग:- बुआई से पहले 10 से 12 टन गोबर की सड़ी हुई खाद मिटटी में मिलाएं। अरण्डी के लिए सुझाए गए उर्वरक नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश उपयोग करें।
अरण्डी में सिंचाई:- खेती के लिए बारिश का पानी पर्याप्त होता है सुखे की स्थिति हो तब फसल वृद्धि की अवस्था में पहले क्रम के स्पाइकों के विकाश या दुसरे क्रम के स्पाइकों के निकलने के समय एक संरक्षी सिंचाई करें। ड्रीप पद्धति के प्रयोग से 80 प्रतिशत पानी की बचत होती है।
खरपतवार नियंत्रण:- अरण्डी की पौधों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व मिले इसलिए खरपतवार को नियंत्रण करना जरुरी है। वर्ष के क्षेत्रों बुआई के 25 दिन बाद से ही खेत की निदाई–गुडाई शुरू करना चाहिए।
रोग और प्रबंधन
किसी फसल में बीज सिंचाई, उर्वरक के अलावा रोग तथा कीट की समुचित प्रबंधन भी आवश्यक है।
फ्यूजेरियम उखटा – इस रोग से पौधे धीरे – धीरे पीले पर जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए रोग प्रतिरोधी बीज का चुनाव करें।
जड़ों का गलना – इसमें पौधों में पानी की कमी दिखाई देती है। रोकथाम हेतु फसलों के अवशेषों को जला कर नष्ट कर दें, अनाज की फसलों के साथ फसल चक्र लें।
अल्टेरनेरिया अंगमारी – इसमें बीज पत्र की पत्तियों पर हल्के भूरे गोल धब्बे दिखाई देते है। बचाव के लिए फसल वृद्धि के 90 दिन बाद से आवश्यकतानुसार 2–3 बार 15 दिनों के अंतराल पे मैन्कोजेब 2.5 ग्रा. / ली. या कापर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम / लीटर का छिड़काव करें।
ग्रे रांट – आरंभ में फूलों पर छोटे काले धब्बे दिखाई देते है जिसमें से पिली द्रव रिसता रहती है, इसी द्रव से कवकीय धागों की वृद्धि होती है जो संक्रमण को फैलाते है।
थियोफ्नाते मिथाइल का 1 ग्रा. / ली. का छिड़काव करें। टी. विरिड़े और सूडोमोनस फ्लुरोसेसस का 3 ग्रा. / ली. से भी छिड़काव कर सकते हैं।
मुख्य कीट, कटाई और कीमत।
मुख्य कीट और प्रबंधन
सेमीलूपर – यह कीट पौधे के पत्तीयों को खा जाती है।
तम्बाकू की इल्लियाँ – इसमें पत्तियां झड़ने लगती है जिससे हानि अधिक होती है।
कैप्सूल बेधक – यह कीट कैप्सूल को छेद कर पूरी बीज को खा जाती है।
कटाई:– फसल की काटाई बीज अच्छी तरह पकजाने के बाद करें। अगर कम पक्का होगा तो बीज खराब हो सकता है। अतः बुआई के बाद 90 से 120 दिनों के बाद जब कैप्सूल का रंग गहरा होने लगे तब कटाई करें।
तथा 30 दिनों के अंतराल के क्रम से स्पाइकों की कटाई करें। काटाई कर स्पाइकों को धूप में सुखायें। गहाई छड़ियों से कैप्सूलों को पिट कर या ट्रैक्टर या बैलों से या मशीन की मदत से करें।
उपज:- बीघे में औसतन 4-5 कुंतल अरण्डी प्राप्त होती है। तथा 1 किग्रा बीज से 550 ग्राम तेल प्राप्त होता है।
अन्य फायदे:- अरण्डी के पत्तों पर रेशम के कीटों को भी पाला जा सकता है। 1 बीघे में रेशम के 5 -6 हज़ार कीटों को पाला जा सकता है। एक बीघे खेत में पाले गए रेशम कीटों 21 किग्रा कुकुन प्राप्त होता है।
रेशम के कीटों से निकली बीट का प्रयोग खाद के रूप में किया जाता है। इसका प्रयोग सब्जी की फसल में बहुत उपयोगी है।
कीमत:- अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय अरण्डी के तेल की कीमत लगभग $1 प्रति किग्रा है। जिससे अच्छी कमाई की जा सकती है।
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WA bhai
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