परिचय:- जेट्रोफा (रत्नज्योत) के तेल का इस्तेमाल ईंधन, औषधि, जैविक खाद, रंग बनाने में किया जाता है। इसके भूमि सूधार, भूमि कटाव को रोकने में, खेत की मेड़ों पर बाड़ के रूप में महत्व है।
यह बदलते परिदृश्य में रोजगार की संभावनाओं को बढ़ानें में उपयोगी साबित हुआ है। यह बायो-डीजल का स्रोत है जिसमें गैर विषाक्त, कम धुएँ वाला एवं पेट्रो-डीजल सी समरूपता पाई गई है। अतः इसे स्वक्ष ईंधन के रूप में भी देखा जाता है।
सामान्यतः जेट्रोफा जंगली अरंड, व्याध्र अरंड, रतनजोत, चन्द्रजोत एवं जमालगोटा आदि के नामों से जाना जाता है। यह अरंडी की एक प्रजाति है, इसका वनस्पति नाम जेट्रोफा करकस है।
उन्नत किस्में:- जी आई ई– नागपुर, पी के वी जे-डी एच डब्लू ,पी के वी जे – एम के वी, टी एफ आर आई -1,टी एफ री आई -2, आर जे – 117, पंत जी – सेल 1, पंत जी – सेल 2, कल्याणपुर, मानकेश्वर, चाण्डक, बामुण्डा आदी कुछ उन्नत किस्में हैं।
जलवायु एवं मिट्टी:- यह समशीतोष्ण, गर्म रेतीले, पथरीले तथा बंजर भूमि में उगाया जाता है। दोमट भूमि इसके लिए उपायुक्त मानी जाती है जहाँ जल निकास की उत्तम व्यवस्था हो।
बीज दर:- इसकी अच्छी खेती के लिए 5 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है।
बीजोपचार:- बीमारियों से बचाव हेतु बीजोपचार हेतु थाइरेम, बेबिस्टीन तथा वाइटावेक्स के (1:1:1) मिश्रण 2 ग्राम प्रति किग्रा को बीज में मिलाकर बोयें।
बुआई:- बीज द्वारा तैयार किए जाते हैं। मार्च-अप्रैल माह में तथा रोपण का कार्य जुलाई से सितम्बर के मध्य किया जा सकता है। बीज द्वारा सीधे भी गड्डों मे बुआई की जाती है।
बुआई पंक्तियों में की जाती है, असिंचित क्षेत्रों में 2×2 मीटर तथा सिंचित क्षेत्रों में 3×3 मीटर की दूरी रखें। गढ्ढे का आकार 45×45×45 रखें।
रोपण की विधि:- गड्डे में मिट्टी, रेत एवं कम्पोस्ट का मिश्रण 1:1:1 के अनुपात में भरें। नर्सरी में तैयार पौधों की रोपाई जुलाई माह से शुरू करें। पौधों की तैयारी समतल क्यारी में 15 x15 से.मी. दूरी पर बीज बोयें।
बोने के पूर्व बीज को 12 घंटो तक भिगोयें। तीन माह बाद स्वस्थ पौधों तैयार होने में 3 महीने लगते हैं।
जेट्रोफा की सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण।
खाद एवं उर्वरक:- रोपण से पूर्व हर गड्ढे में मिट्टी, कम्पोस्ट तथा रेत 1:1:1 के अनुपात का मिश्रण भरें तथा 20 ग्राम यूरिया के साथ 120 ग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट एवं 15 ग्राम म्युरेट ऑफ पोटास मिला दें।
दीमक नियंत्रण के लिए क्लोरो पायरिफॉस पाउडर प्रति गड्डा में डालें, तत्पश्चात पौधा रोपण करें।
सिंचाई एवं खरपतवार नियंत्रण:- शुष्क मौसम में आवश्यकता अनुसार दो सिंचाई उत्तम रहती है। प्रत्येक तीन माह के अन्तराल पर खाद दें तथा आवश्यकता अनुसार निदाई-गुड़ाई करें।
रोग नियंत्रण:- कोमल पौधों में जड़-सड़न तथा तना बिगलन रोग पाया जाता है अतः बीजोपचार करें।
कीट नियंत्रण:- कोमल पौधों में कटूवा पाया जाता है जो तने को काट कर नुकसान पहुँचा सकता है। इसे लिंडेन का सूखा पाउडर के छिड़काव से नियंत्रण किया जा सकता है।
कटाई-छँटाई:- पौधों को गोल छाते को बेहतर छाते सा आकार देने के लिए दो वर्ष तक कटाई-छँटाई आवश्यक है।
प्रथम कटाई रोपण के 7-8 महीने दूसरी छँटाई पुनः 12 महीने बाद इसमें सभी टहनियों में 1/3 भाग छोड़कर शेष हिस्सा काट देना चाहिए। छँटाई के बाद 1 ग्राम बेविस्टीन 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। अप्रैल- मई महीनों में छँटाई का कार्य किया जाता है।
कटाई:- बरसात के साथ हीं पौधों में फूल आना प्रारंभ हो जाता है। दिसंबर-जनवरी के महीनें में हरे रंग के फल काले पड़ने लगते हैं, फल का ऊपरी भाग काला पड़ने लगे तब तोड़ा जाता है।
उपज:- प्रथम तथा दूसरे वर्ष कोई उपज नहीं मिलता है। तृतीय वर्षः 500 ग्राम/पेड़, चतुर्थ वर्षः 1 किलो ग्राम/पेड़ पंचम वर्षः 2 किलो ग्राम/पेड़ ,छठे वर्षः 4 किलो ग्राम/ पेड़ प्राप्त किए जाते हैं।
आय:- 6 रुपये प्रति किग्रा बीज की विक्रय दर से गणना की जा सकती है।
श्रोत:- कृषि विश्वविद्यालय के गणना के आधार पे।
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Sahi h
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