परिचय:- सूरजमुखी एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल है इसकी खेती खरीफ, रबी एवं जायद तीनो ही मौसम में की जा सकती है। लेकिन उत्तर भारत में जायद में ही इसकी खेती ज्यादातर की जाती है, और यही समय उपयुक्त भी रहता है।
क्योंकि इस मौशम में मधुमक्खी अधिक होती है। जो इसकी उपज के लिए अनिवार्य है। इसके वनस्पति से घी भी बनाई जाती है, साथ ही यह औषधीय गुणों से भी परिपूर्ण है।
प्रमुख किस्में
एच .एस. एफ. एच-848, इसकी पैदावार 22-25 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। तथा दानों में तेल 40%, समय 95-100 दीन।
ई.सी. 68415 सी, पैदावार 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर, दानों में तेल 40% , समय 90 दिन।
पी. एच. एच.1962 ,पैदावार 8.2 कुंतल/हेक्टेयर समय 99 दिन।
जलवायु:- सूरजमुखी की खेती खरीफ रबी जायद तीनो मौसम में की जा सकती है। फसल पकते समय शुष्क जलवायु की अति आवश्यकता पड़ती है।
भूमि:- वैसे तो सूरजमुखी हर प्रकार की भूमि पर उगाई जा सकती है। परंतु अच्छी जल निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।
खेत की तैयारी:- सूरजमुखी की फसल के लिए आवश्यक है की मिट्टी नमी युक्त तथा भुरभुरी हो। पर्याप्त नमी न होने पर खेत को पलेवा करके जुताई करनी चाहिए।
एक जुताई मिटटी पलटने वाले हल से तथा बाद में 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करनी चाहिए ताकी मिटटी भुरभुरी हो जाय तथा नमी सुरक्षित बनी रहे।
बुआई का समय:- जायद में सूरजमुखी की बुआई 15 जनवरी से 15 फरबरी है 15 फरबरी के पास का समय सर्वोत्तम माना जाता है। ध्यान रहे की तापमान सामान्य हो।
इस समय बुआई करने पर मई के अंत से जुन के प्रारंभ तक फसल तैयार हो जाती है। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटी मीटर तथा पौध से पौध की दूरी 15 से 20 सेंटीमीटर रखना उत्तम है।
सूरजमुखी की सिंचाई, खाद एवं उर्वरक।
बीज की मात्रा:- उन्नत किस्में 10 किग्रा/हेक्टेयर तथा संकर किस्में 4 से 5 किग्रा/ हेक्टेयर पर्याप्त है।
खाद एवं उर्वरक:- उर्वरकों का उचित प्रयोग मृदा के परिक्षण परिणाम के आधार पर ही करनी चाहिए। उन्नत तथा संकरा किस्म के लिए अलग-अलग पैमाने लिए जाते हैं।
सामान्यतः नत्रजन, फ़फॉस्फोरस एवम पोटाश तत्व के रूप में पर्याप्त होता है। नत्रजन की आधी मात्रा एवम फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा बुआई के समय कुडों में प्रयोग करना चाहिए इसका विशेष ध्यान रहे।
शेष नत्रजन की मात्रा बुआई के 25 या 30 दिन बाद ट्राईफ़ोसीड के रूप में देना चाहिए। आलू के बाद फसल ली जाने के क्रम में 20 से 25% उर्वरक की मात्र कम की जाती है। आखिरी के समय 250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद लाभदायक है।
सिंचाई:- पहली सिंचाई बुआई के 20 से 25 दिन बाद हल्की या स्प्रिकलर से करनी चाहिए। बाद में आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए, कुल 5 से 6 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
फूल निकलते समय तथा दाना भरते समय बहुत हल्की सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
निदाइ एवं गुड़ाई:- पहली सिंचाई के बाद ओट आने के बाद निराई गुड़ाई करना आवश्यक है। इससे खरपतवार नियंत्रित होते है तथा जड़ो में वायु भी लगती है।
रसायनो द्वारा खरपतवार नियत्रण हेतु पेंडामेथालिन 30 ई सी की 3.3 लीटर ,600 से 800 लीटर पानी घोलकर प्रति हैक्टर की दर से बुआई के 2-3 दिन के अन्दर छिड़काव करें।
फसल सुरक्षा, भण्डारण एवं आर्थिक महत्व।
मिट्टी चढ़ाना:- सूरजमुखी का फूल बहुत ही बड़ा होता है इससे पौधा गिराने का भय बना रहता है, इसलिए नत्रजन की दूसरी मात्रा देने के पश्चात पौधों पर 10 से 15 सेंटीमीटर ऊँची मिट्टी चढाना अति आवश्यक है।
फसल सुरक्षा:- सूरजमुखी में कई प्रकार के कीट लगते है जैसे की दीमक, हरे फुदके, कटुआ सूण्डी, बालों वाली सूण्डी डसकी बग आदि है।
इनके नियंत्रण के लिए कई प्रकार के रसायनो का प्रयोग किया जा सकता है। मिथाइल ओडिमेंटान 1 लीटर 25 ई सी या फेन्बलारेट 750 मिली लीटर प्रति हैक्टर 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़कने से इससे निजात पाया जा सकता है।
कटाई और मड़ाई:- सूरजमुखी के बीज कड़े हो जाने पर फूलो के कटाई करके एकत्र कर ले, कटे हुए फूलों को छाया में सूखा ले।
इनको ढेर बनाकर नहीं रखें, इसके बाद डंडे से पिटाई करके बीज निकाल लें इसके लिए सूरजमुखी थ्रेशर का प्रयोग करना उपयुक्त होता है।
भण्डारण:- बीज निकलने के बाद अच्छी तरह सूखा लेना चाहिए बीज में 8 – 10% से अधिक नमी नहीं रहे। बीजो से 3 महीने के अन्दर तेल निकाल लेना चाहिए अन्यथा तेल में कड़वाहट आ जाती है।
आर्थिक महत्व:- सूरजमुखी का तना, बीज तथा खल्ली तीनों ही बाजार में बिकता है। इसके तेल में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है अतः दिल के मरीज के लिए ये अत्यंत उपयोगी है।
इसे तेल, पेंट, वार्निश, साबुन तथा दवा बनाने में उपयोग किया जाता है। जिससे अच्छी कमाई की जा सकती है।
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