मूंगफली की खेती, किस्में, खुदाई एवं भण्डारण।

मूंगफली तिलहन की एक महत्वपूर्ण फसल है। ये भारत के विभिन्न प्रान्तों में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। इसे तेल तथा खाद्यान्न दोनो रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

परिचय:- मूंगफली तिलहन की एक महत्वपूर्ण फसल है। ये भारत के विभिन्न प्रान्तों में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। इसे तेल तथा खाद्यान्न दोनो रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मूंगफली के तेल में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-बी, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस और पोटाश जैसे खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।

इसकी खेती गुजरात, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक इसके प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

मूंगफल के तेल में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन-बी, विटामिन-सी, कैल्शियम, मैग्नेशियम, जिंक फॉस्फोरस और पोटाश जैसे खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते है।
मूंगफली

जलवायु:- मूंगफली अर्ध -उष्ण जलवायु के लिए उपयुक्त तिलहन फसल है। उच्च तापमान तथा सूर्य की अधिक रौशनी इसके बढ़वार में उपयोगी है।

अच्छी पैदावार के लिए तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तथा वर्षा 500 से 1000 मिली मीटर उत्तम मानी जाती है।

उपयुक्त मृदा:- मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की हल्की से लेकर भारी मृदाओं में की जा सकती है। अच्छी उत्पादन हेतु जल निकास वाली कैल्शियम तथा जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा उत्तम होती है। मृदा का पीएच मान 6 से 7 उपयुक्त रहता है।

खेत की तैयारी:- मई में खेत की एक जुताई मिट्टी पलटनें वाले हल से करके हैरो चलाकर मिट्टी को भुरभुरी कर लें। इसके बाद पाटा चलाकर खेत को समतल कर लें। खेत की आखिरी जुताई के समय 2.5 क्विंटल प्रति हैक्टेयर जिप्सम का उपयोग करना उत्तम होता है।

दीमक तथा अन्य कीड़ों से बचाव के लिए किनलफोस 25 किग्रा तथा निम की ख़ली 400 किग्रा प्रति हैक्टेयर मिला दें।

उन्नत किस्में:- आर एस -1, एम -335, चित्रा, आर जी -382, एम -13, एम ए -10, डी ए जी -24, आर एस बी -87, सोमनाथ, कौशल आदी।

मूंगफली की सिंचाई, बीजोपचार एवं खरपतवार नियंत्रण

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन:- मिट्टी परिक्षण के आधार पर ही खाद एवं उर्वरकों की मात्रा सुनिश्चित करना उचित है। सामान्यतः मूंगफली की अच्छी फसल के लिये 5 टन सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति हैक्टेयर जुताई के समय देनी चाहिए।

उर्वरक के रूप में यूरिया, डी ए पी, नत्रजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग आधार खाद के रूप में उचित मात्रा में दें।

बीजदर:- मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों का 100 कि.ग्रा. तथा फैलने वाली प्रजातियों का 80 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर उत्तम माना गया है।

बीजोपचार:- कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत + थाइरम 37.5 प्रतिशत की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. से बीज का उपचार करें।

बुआई पहले राइजोबियम और फास्फोरस घोलक जीवाणु से 5-10 ग्रा./कि.ग्रा. के घोल से बीज का उपचार करें। जैविक उर्वरकों से उपचार मूंगफली में 15-20 प्रतिशत की उपज बढ़ा सकती है।

बुआई की विधि:- मूंगफली की बुआई जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह में की जाती है। झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखें।

मूंगफली की बुआई जून के दूसरे सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह में की जाती है। झुमका किस्म के लिए कतार से कतार की दूरी 30 से.मी. और पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखें।
मूंगफली की खेती

विस्तार किस्मों के लिए कतार से कतार की दूरी 45 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 15 सें.मी. रखें। बीज को 3 से 5 से.मी. की गहराई में बोनी चाहिए।

फसल की बुआई रेज्ड/ब्रोड-बेड पद्धति से करना लाभप्रद रहता है। इस पद्धति के अंतर्गत मूंगफली की 5 कतारों के बाद एक कतार खाली छोड़ देते है।

इससे भूमि में नमीं का संचय, जलनिकास, खरपतवार नियंत्रण तथा फसल की देख-रेख सही से होती है। जिसके कारण उपज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

खरपतवार नियंत्रण:- मूंगफली की अच्छी पैदावार लेने के लिय समय-समय पर निदाई-गुड़ाई अवश्य करें। इससे जड़ों का फैलाव अच्छा होता है, साथ ही भूमि में वायु संचार भी बढ़ता है, और मिट्टी चढ़ाने का कार्य भी हो जाता है, जिससे उत्पादन बढ़ता है।

सिंचाई प्रबंधन:- मूंगफली वर्षा आधारित फसल है, अतः सिंचाई की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है। जल जमाव मूंगफली के लिए हानिकारक है।

कीट रोकथाम, खुदाई एवं भण्डारण

कीटों की रोकथाम

सफेद लट, बिहार रोमिल इल्ली, मूंगफली का माहू व दीमक इसमे लगने वाले प्रमुख किट है।

सफेद लट की समस्या वाले क्षेत्रों में बुआई के पहले फोरेट 10 जी या कार्बोयुरान 3 जी 20-25 कि.ग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से खेत में डालें।

दीमक के प्रकोप को रोकने के लिये क्लोरोपायरीफॉस दवा की 3 लीटर मात्रा प्रति हैक्टर दर से प्रयोग करे।

रस चूसक कीटों जैैसे माहू, थ्रिप्स व सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./प्रति लीटर या डायमिथोएट 30 ई.सी. का 2 मि.ली./ली. 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर प्रयोग करें।

पत्ती सुरंगक कीट के नियंत्रण हेतु क्यूनॉलफॉस 25 ई.सी. का 1 लीटर/हैक्टर का 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना उचित माना गया है।

रोगों की रोकथाम:- मूंगफली में प्रमुख रूप से टिक्का, कॉलर और तना गलन और रोजेट रोग होता है।

टिक्का के रोकथाम के लिए डायथेन एम-45 का 2 ग्रा./लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव 10-12 दिन के अंतराल पर करें।

रोजेट के फैलाव को रोकने के लिए फसल पर इमिडाक्लोप्रिड 0.5 मि.ली./लीटर पानी के मान से घोल बनाकर छिड़काव करें।

खुदाई एवं भण्डारण:- खुदाई पौधों की पत्तियों का रंग पीला पड़ने लगे और फलियों के अंदर का टेनिन का रंग उड़ जाने तथा बीज खोल रंगीन हो जाने के बाद करें।

खुदाई से पहले हल्की सिंचाई कर लें और पौधों से फलियाँ को अलग कर लें।

भंडारण और अंकुरण क्षमता बनाये रखने के लिए खुदाई पश्चात् सावधानीपूर्वक सुखाना चाहिए। भंडारण के पूर्व पके हुये दानों में नमीं की मात्रा 8 से 10% से अधिक नहीं हो अतः अच्छे से सुखाएं।

मूंगफली को तेज धूप में सुखाने से अंकुरण क्षमता का हा्रस होता है।

फसलबाज़ार

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