बेर की बागवानी, उन्नत किस्में एवं व्यापारिक लाभ।

बेर एक उष्ण फल है जिसमें जल को सोखने की क्षमता बहुत कम होती है। यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसके फल बीज पत्ते तथा लकड़ी आयुर्वेद में सभी के उपयोगों की विस्तारपूर्वक विधी दी गई है।

परिचय:- बेर एक उष्ण फल है जिसमें जल को सोखने की क्षमता बहुत कम होती है। यह औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसके फल, बीज, पत्ते तथा लकड़ी आयुर्वेद में सभी के उपयोगों की विस्तारपूर्वक विधी दी गई है।

बेर खेती ऊष्ण तथा उपोष्ण जलवायु में आसानी से की जा सकती है। इसमें सूखे से लड़ने की विशेष क्षमता होती है। बेर की बढ़वार वर्षा ऋतु के दौरान तथा फूल वर्षा ऋतु के आखिर में आते हैं ।
बेर

जलवायु:- बेर खेती ऊष्ण तथा उपोष्ण जलवायु में आसानी से की जा सकती है। इसमें सूखे से लड़ने की विशेष क्षमता होती है। बेर की बढ़वार वर्षा ऋतु के दौरान तथा फूल वर्षा ऋतु के आखिर में आते हैं।

फल वर्षा की भूमिगत नमी के कम होने तथा तापमान बढ़ने से पहले फरवरी-मार्च के महीने तक पक जाते हैं। गर्मियों में पौधे सुषुप्तावस्था में चले जाते हैं। उस समय पेड़ की पत्तियाँ अपने आप ही झड़ जाती हैं, तब पानी की आवश्यकता नहीं के बराबर होती है।

इस प्रकार बेर अधिक तापमान सहन कर लेता है। परन्तु शीत ऋतु में पड़ने वाले पाले के प्रति अति संवेदनशील होता है। अतः नियमित रूप से पाला पड़ने वाले क्षेत्रों में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।

मिट्टी:- बलुई दोमट मिट्‌टी जिसमें जीवांश की मात्रा अधिक हो इसके लिए सर्वोत्तम है। बलुई मिट्‌टी में समुचित मात्रा में देशी खाद का उपयोग करके इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है। हल्की क्षारीय तथा हल्की लवणीय भूमि में भी बेर लगा सकते हैं।

उन्नत किस्में:- उन्नत किस्में गोला, काजरी गोला इनके फल दिसम्बर के अन्तिम सप्ताह में पकना शुरू होते हैं। सेव, कैथली, छुहारा, दण्डन, सेन्यूर-5, मुण्डिया, गोमा कीर्ति इत्यादि-जिनके फल मध्य जनवरी से मध्य फरवरी तक रहते हैं। उमरान, काठा, टीकड़ी, इलायची इन किस्मों के फल फरवरी-मार्च तक रहते हैं।

बगीचे की तैयारी:- सबसे पहले बगीचे के लिए चयनित खेत की सफाई करके उसके चारों ओर बाड़ बनाएं,ताकि रोजड़े व अन्य जानवरों से पौधों को बचाया जा सके। खेत की तैयारी मई-जून महीने में प्रारंभ करें।

पहले 6-7 मीटर की दूरी पर वर्गाकार विधि से रेखांकन करके 2’2’2′ आकार के गढ़्‌ढ़े खोदे तथा कुछ दिन धूप में खुला छोड़ दें।

पौध रोपण:- सबसे पहले ऊपरी मिट्‌टी में 20-25 किलो देशी खाद व 10 ग्राम फिपरोनिल प्रति गड्ढा मिलाकर गढ्डे को भर दें।

पहली वर्षा से जुलाई माह में जब गड्‌ढ़ों की मिट्‌टी जम जाए तो इसके मध्य बिंदु में पहले से कलिकायन किए पौधों को प्रतिरोपित करें। अगले दिन करीब दस लीटर पानी प्रति पौधा फिर दे।

इसके पश्चात वर्षा की स्थिति को देखते हुए जरूरत के अनुसार 5-7 दिन के अन्तराल पर सिंचाई करते रहें। सर्दी के मौसम तक पौधे स्थापित हो जाते हैं, तब 15 दिन पर सिंचाई कर सकते हैं लेकिन गर्मी के मौसम में रोपाई के पहले वर्ष में एक सप्ताह के अन्तर पर सिंचाई करनी चाहिए।

अन्तरफसल:- तीन वर्ष तक पौधों की कतारों के बीच में मटर, मिर्च, चौला, बैंगन इत्यादि उगाई जा सकती है। बारानी क्षेत्रों में मोठ, मूंग व ग्वार की खेती काफी लाभदायक है।

कटाई – छँटाई:- बेर में कटाई-छँटाई का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। प्रारम्भिक वर्षों में मूलवृन्त से निकलने वाली शाखाओं को काटते रहें ताकि ऊपरी भाग की उचित बढ़ोत्तरी हो सके।

शुरूआत के 2-3 वर्ष में पौधों को उचित रूप व आकार देने के लिए कटाई-छँटाई आवश्यक है। इसके बाद प्रति वर्ष छटाई करें ताकी बेर में फल नई शाखाओं पर ही लगते हैं।

बेर की प्रमुख किट एवं आय

खाद एवं उर्वरक:- देशी खाद, सुपर फास्फेट व म्यूरेट आफ पोटाश की पूरी मात्रा व नत्रजन युक्त उर्वरक यूरिया की आधी मात्रा जुलाई माह में पेड़ों के फैलाव के हिसाब से अच्छी तरह मिलाकर सिंचाई कर दें, बची हुई नत्रजन फल लगने पर दें।

 सबसे पहले बगीचे के लिए चयनित खेत की सफाई करके उसके चारों ओर बाड़ बनाएं,ताकि रोजड़े व अन्य जानवरों से पौधों को बचाया जा सके। खेत की तैयारी मई-जून महीने में प्रारंभ करें।
बेर की बागवानी

प्रमुख किट तथा रोग

फल मक्खी – यह कीट बेर को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाता है। नियंत्रण के लिए मई-जून में बाग की मिट्‌टी पलटें। फल लगने के बाद जब अधिकांश फल मटर के दाने के साइज के हो जाएं तब क्यूनालफास 25 ईसी 1 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। दूसरा छिड़काव पहले छिड़काव के 20-25 दिन बाद करें।

छालभक्षी कीट – यह कीट नई शाखाओं के जोड़ पर छाल के अन्दर घुस कर जोड़ को कमजोर कर देता है।

रोकथाम के लिए खेत को साफ रखें, जुलाई-अगस्त में डाइक्लोरवास 76 ईसी 2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर नई शाखाओं के जोड़ों पर दो-तीन बार छिड़काव कर दें।

चेफर बीटल – यह पेड़ों की नई पत्तियों एवं प्ररोहों को नुकसान पहुँचाता है। इससे पत्तियों में छिद्र हो जाते हैं।

नियंत्रण के लिए पहली वर्षा के तुरन्त बाद क्यूनालफास 25 ईसी 2 मिली या कार्बेरिल 50 डब्लूपी 4 ग्राम प्रतिलीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

छाछया (पाउडरी मिल्डयू या चूर्णी फफूँद):- इस रोग में बेर की पत्तियों, टहनियों व फूलों पर सफेद पाउडर सा जमा हो जाता है तथा प्रभावित भागों की बढ़वार रूक जाती है।

रोकथाम के लिए केराथेन एल.सी. 1 मिलीलीटर या घुलनशील गंधक 2 ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 15 दिन के अन्तर पर दो-तीन छिड़काव करें।

सूटीमोल्ड – इस रोग से बचाव के लिए रोग के लक्षण दिखाई देते है मैन्कोजेब 3 ग्राम या कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

पत्ती धब्बा/झुलसा – यह रोग आल्टरनेरिया नामक फॅफूद के आक्रमण से होता है। नियंत्रण हेतु रोग दिखाई देते ही मेन्कोजेब 3 ग्राम या थायोफिनेट मिथाइल 1 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 15 दिन के अन्तर पर 2-3 छिड़काव करें।

आय:- प्रति हेक्टेयर शुद्ध आय 1 लाख तक हो सकता है।

फसलबाज़ार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Language»