जामुन की खेती, फायदे एवं व्यापारिक लाभ।

जामुन एक सदाबहार वृक्ष है, जिसे हिंदुस्तान में देशी फसल के नाम से जाना जाता है। जामुन के लिए समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली जगह अच्छी मानी जाती है। इसकी खेती इंडोनेशिया, फिलीपींस, भारत , म्यांमार, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में होती है। भारत में जामुन की खेती ज्यादातर गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आसाम और तमिलनाडु राज्यों में होती है।

परिचय:- जामुन एक सदाबहार वृक्ष है, जिसे हिंदुस्तान में देशी फसल के नाम से जाना जाता है। जामुन के लिए समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जलवायु वाली जगह अच्छी मानी जाती है। इसकी खेती इंडोनेशिया, फिलीपींस, भारत , म्यांमार, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में होती है। भारत में जामुन की खेती ज्यादातर गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आसाम और तमिलनाडु राज्यों में होती है।

जामुन के फल स्वादिस्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद भी होते है। इसके फलों का जेली, शराब, जैम और शरबत बनाने के लिए एवं कई तरह के दवाई बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, जिस वजह से इसकी मांग भी काफी बढ़ गयी है।

जामुन के फल स्वादिस्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद भी होते है। इसके फलों का जेली, शराब, जैम और शरबत बनाने के लिए एवं कई तरह के दवाई बनाने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है जिस वजह से इसकी मांग भी काफी बढ़ गयी है।
जामुन

फायदे:- जामुन के फल और इसके बीज दोनों ही स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते है। जामुन की बीज को सूखा के और पीस के दही के साथ खाना चाहिए। इससे मधुमेह, पथरी, खूनी दस्त, दांत और मसूड़ों की समस्याओं, पाचन क्रिया की समस्याएं दूर हो जाती हैं।

उपयुक्त भूमि:- जामुन का पेड़ सख्त होने के कारण इसको कई तरह की मिट्टी जैसे की पुअर, सोडिक, नमकीन, चूने वाली और दलदली मिट्टी में उगाया जा सकता है।

ज्यादा पैदावार के लिए जल निकासी वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी गयी है। खेत का pH 5 – 8 के बीच में होना चाहिए। जामुन की खेती कठोर और रेतीली मिटटी में नहीं होती है।

जलवायु और तापमान:- जामुन के लिए उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जलवायु वाली जगह अच्छी मानी जाती है। भारत में जामुन की खेती किसी भी जगह हो सकती है, सिवाय ठंडी जगहों को छोड़ के क्यूंकि सर्दीयों में पड़ने वाला पाला इसको नुकसान पंहुचा सकती है।

बेहद ज्यादा गर्म मौसम भी इसे नुकसान पंहुचा सकती है, और फूल बनने के दौरान बारिश फूलो को नुकसान पंहुचा सकती है। लेकिन फल पकने में बारिश का ख़ास योगदान होता है।

जामुन के पेड़ को ऐसी जगह लगाना चाहिए जहां उसे सही समय पर सही वातावरण मिले। पौधे को अंकुरित होने के लिए लग-भग 20 डिग्री और विकास करने के लिए सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है।

उन्नत किस्में:- जामुन की कई किस्में हैं जैसे की राजा जामुन, सी.आई.एस.एच. जे – 45, री जामुन, कोंकण भादोली, गोमा प्रियंका, काथा, भादो, सी.आई.एस.एच. जे – 37, नरेंद्र 6, जत्थी और राजेन्द्र 1 हैं। इन सभी जामुन की किस्मों के अलग-अलग गुण है और इनको अलग-अलग स्थान पर लगाया जाता है।

पौधा लगाने का समय:- जामुन के पौधे बरसात के मौसम में लगाने चाहिए जिससे पौधे को विकास करने के लिए अनुकूल तापमान मिल सके। बीज के तरीके से इसके पौधे तैयार करने के लिए बरसात या बरसात से पहले उगाया जाता हैं। बरसात से पहले इसे मध्य फरवरी से मार्च के अंत तक उगाया जाता है।

खेत की तैयारी:- जामुन के पेड़ को गड्डे तैयार करके लगते है इसके लिए पहले शुरुआत में खेत की जुताई कर उसे कुछ दिन के लिए खुला छोड़ दें। कुछ दिन बाद खेत में रोटावेटर चला दें जिससे मिट्टी में मौजूद ढेलों को खत्म किया जा सके।

उसके बाद खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल बना ले और 5 से 7 मीटर की दूरी पर 1 मीटर व्यास वाले 1.5 – 2 फिट गहरे गड्डे तैयार कर लें। फिर गढ्ढो में सही मात्रा में जैविक और रासायनिक खाद को मिट्टी में मिलकर भर दे और उसके बाद गहरी सिंचाई कर ढक दें। 1 महीने बाद इस गढ्ढे में बीज या पौधे रोपा जा सकता है।

पौधे की तयारी:- जामुन के पौधे बीज और कलम दोनों तरीके से तैयार किये जा सकते है, या फिर सरकार द्वारा रजिस्टर्ड नर्सरी से मिल सकता है। कलम और बीज के तरीके से पौधा तैयार करने में लग-भग 3 – 5 महीना लग जाता है, इसीलिए नर्सरी से पौधा खरीद के लगाने से समय की बचत होती है। पौधे को कलम के तरीके से तैयार करने के लिए गूटी, कलम रोपण और ग्राफ्टिं विधि का इस्तेमाल किया जाता है।

फसल रोपाई:- जामुन के पौधे को बीज के तरीके से लगाने में पौधे को फल देने में ज्यादा वक्त लगता हैं इस तरके से पौधा लगाने के लिए 1 गड्डे में 1 या 2 बीज को लग-भग 5 सेंटीमीटर की गहराई में रोपना चाहिए। जब बीज पौधा बन जाये तो अच्छे से विकास कर रहे पौधे को रखकर दूसरे पौधे को हटा देना चाहिए।

पौधे रोप के जब पेड़ लगाना हो तो गड्डों में खुरपी की सहायता से एक और छोटा गड्डा किया जाता है और उसमे इसकी स्वस्थ कलम को लगा देते है। उसके बाद पौधों को तैयार किये गए गड्डों में रोप के मिटटी को दबा देना है।

जामुन की सिंचाई एवं कीट रोकथाम

सिंचाई:- पौधों या बीज को गड्डों में लगाने के तुरंत बाद ही पहली सिंचाई कर देनी चाहिए और गर्मियों में पौधे को हफ्ते में 1 बार और सर्दियों में 15 दिन के अंतराल में पानी दे देना चाहिए। विकसित पेड़ को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नही होती। जामुन के पौधे को विकसित होने के बाद वर्ष में 5 – 7 सिंचाई की ही जरूरत होती है।

पौधों को गड्डों में लगाने से पहले गड्डों में 10 - 15 किलो पुरानी सड़ी गोबर या वर्मी कम्पोस्ट को मिट्टी में मिलाकर भर दें। इसके अलावा हर पौधे को 100 ग्राम एन.पी.के. साल में 3 बार देना चाहिए। जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाये तो 50 - 60 किलो जैविक और 1 किलो रासायनिक खाद साल में 4 बार देना चाहिए।
जामुन की खेती

उर्वरक:- पौधों को गड्डों में लगाने से पहले गड्डों में 10 – 15 किलो पुरानी सड़ी गोबर या वर्मी कम्पोस्ट को मिट्टी में मिलाकर भर दें। इसके अलावा हर पौधे को 100 ग्राम एन.पी.के. साल में 3 बार देना चाहिए। जब पौधा पूर्ण रूप से विकसित हो जाये तो 50 – 60 किलो जैविक और 1 किलो रासायनिक खाद साल में 4 बार देना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण:- खरपतवार नियंत्रण के लिए निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए जिससे जड़ों को उचित मात्रा में हवा भी मिल सके और पौधे अच्छे से विकास कर सके। पहली गुड़ाई बीज या पौधा रोपने के 15 – 20 दिन बाद करनी चाहिए।

जामुन के पौधे को शुरुआत में 1 साल में 7 – 10 गुड़ाई और बाद में 4 – 5 गुड़ाई करनी चाहिए। बाकि के खली जमीन में बारिश के बाद खेत सूखने पर हलकी जुताई कर देनी चाहिए जिससे वह
जन्म लेने वाली खरपतवार ख़तम हो जाये।

रोग एवं कीट रोकथाम

पत्ता जोड़ मकड़ी – यह रोग कई पत्तियों को आपस में सफ़ेद रंग के रेशों से जोड़कर एकत्रित कर लेती हैं जिसमें कीट जन्म ले लेते हैं जो फलों को खारब करते है।

रोकथाम के लिए एकत्रित हुई पत्तियों को तोड़कर हटा देना चाहिए और उचित मात्रा में क्लोरपीरिफॉस या इंडोसल्फान का छिडकाव करना चाहिए।

पत्ती झुलसा – तेज़ गर्मी पड़ने पर पत्तियों पर भूरे पीले रंग के धब्बे बन जाते हैं और वह सुखकर सिकुड़ने लगती है जिसकी वजह से पौधों का विकास रुक जाता।

रोकथाम के लिए पौधों पर उचित मात्रा का एम-45 की छिडकाव करना चाहिए।

फल और फूल झडन – पौधों में पोषक तत्व की कमी की वजह से फल और फूल झरने लगते है इसके अलावा बारिश के वजह से भी फूल झरने लगते है जिससे फ़सल कम हो जाती है।

रोकथाम के लिए पौधों पर उचित मात्रा का जिब्रेलिक एसिड की छिडकाव करे।

फसल तोड़ाई:- जामुन का पौधा रोपने के लग-भग 8 साल बाद जामुन का पेड़ पूर्ण रूप से पैदावार देना शुरू कर देता है। फल फूल खिलने के लग-भग डेढ़ महीने बाद पकने लगते है और बैंगनी काले रंग के हो जाते है। फलों के पकने के समय सामान्य बारिश का होना अच्छा होता है। इससे फल जल्दी पक जाते है।

फलों को रोज़ तोडना चाहिए जिससे वो जमीन पे न गिरे, जमीन पर गिरने से फल ख़राब भी हो सकते है। फलों को धोकर जालीदार बाँस की टोकरियों में भरकर पैक कर सकते है। टोकरियों में भरने से पहले खराब फलों को हटा दे।

उपज:- 1 पौधे से लग-भग 80 – 90 किलो जामुन प्राप्त हो जाती है। 1 एकड़ में लग-भग 100 से ज्यादा पेड़ लगाए जा सकते हैं, जिनका कुल उत्पादन 10,000 किलो हो सकता है। इस हिसाब से एक एकड़ से एक बार में लग-भग 8 – 9 लाख की कमाई हो सकती हैं।

फसलबाज़ार

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