कीवी की बागवानी खेती, भंडारण एवं लाभ।

कीवी एक अत्यन्त स्वादिष्ट और पौष्टिक फल है। इसमें विटामिन सी बहुतायत मात्रा में पाई जाती है। इसके अतिरिक्त इस फल में विटामिन बी, फास्फोरस, पौटिशयम व कैल्सियम तत्व भी अधिक पाये जाते हैं, यह डेंगू बुखार में बहुत फायदेमंद है।

परिचय:- कीवी एक अत्यन्त स्वादिष्ट और पौष्टिक फल है। इसमें विटामिन सी बहुतायत मात्रा में पाई जाती है। इसके अतिरिक्त इस फल में विटामिन बी, फास्फोरस, पौटिशयम व कैल्सियम तत्व भी अधिक पाये जाते हैं, यह डेंगू बुखार में बहुत फायदेमंद है।

पिछले कुछ दशकों में कीवी विश्व भर में लोकप्रिय होने वाला फल है। भारत के किसानों का भी कीवी की बागवानी में काफी रुझान दिखा है, इसकी खेती के लिए उत्तराखंड का वातावरण आदर्श है।

कीवी फल का व्यवसायिक रूप से उत्पादन व निर्यात न्यूजीलैंड ने प्रारंभ किया। भारत में कीवी का उत्पादन वर्ष 1960 में बंगलोर में प्रारंभ किया गया जो असफल रहा। उसके बाद 1963 में शिमला में सात प्रजातियाँ लगाई गई जिनसे सफल उत्पादन प्राप्त किया गया।
कीवी

कीवी फल का व्यवसायिक रूप से उत्पादन व निर्यात न्यूजीलैंड ने प्रारंभ किया। भारत में कीवी का उत्पादन वर्ष 1960 में बंगलोर में प्रारंभ किया गया जो असफल रहा। उसके बाद 1963 में शिमला में सात प्रजातियाँ लगाई गई जिनसे सफल उत्पादन प्राप्त किया गया।

जलवायु:- कीवी एक पर्णपाती पौधा है। हमारे यहाँ यह मध्यवर्ती क्षेत्रों में समुद्र तल से 600 से 1500 मीटर की उँचाई तक सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है।

कीवी फल में फूल अप्रैल में आते हैं, पाले का प्रकोप फल के निर्माण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है। अतः पाले की समस्या वाले क्षेत्रों में इस फल की बागवानी सफलतापूर्वक नहीं हो सकती।

ऐसे क्षेत्र जिनका तापमान गर्मियों में 35 डिग्री से कम रहता है तथा तेज हवाएं चलती हो, कीवी की बागवानी के लिए उपयुक्त हैं। कीवी के मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर में सिंचाई का उचित प्रबन्ध होना आवश्यक है।

भूमि तथा मृदा परीक्षण:- उचित जल निकास वाली जीवांशयुक्त बलुई दोमट भूमि कीवी के लिए सर्वोत्तम मानी गई है।

उद्यान लगाने से पहले भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं जिससे मृदा का पी एच मान चयनित भूमि में उपलब्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके।

पी. एच. मान कम रहने पर (अम्लीय) मिट्टी में चूना या लकड़ी की राख मिलायें यदि मिट्टी का पी. एच. मान अधिक (क्षारीय) हो तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट, (जिप्सम) या यूरिया उर्वरक का प्रयोग करें।

कीवी फल पौधों के लिए 6.5 पी.एच. के आस पास की भूमि उपयुक्त रहती है। जो न तो अम्लीय है और न क्षारीय।

किस्में:- कीवी फल मे दो प्रकार की किस्में होती है एक नर और दूसरी मादा।

बाग में लगाई जाने वाली प्रमुख नर किस्में हैं। एलीसन, मुतवा और तमूरी न, वहीं मादा किस्में हैं एवोट, एलीसन ब्रूनों, हैवर्ड और मोन्टी ।

हैवर्ड न्यूजीलैण्ड की सबसे अधिक उन्नत किस्में है जिसका व्यापारिक खेती में अधिक उपयोग किया जाता है, तो एलीसन व मोन्टी अपनी मिठास के लिए लोकप्रिय है।

प्रवर्धन:- प्रवर्धन हेतु बीजू पौधे को प्रयोग में लाया जाता है। पौधों का प्रबन्धन उपरोपण बांधना और चश्मा चढ़ाने के द्वारा किया जाता है।

कोमल तना के कलमों से भी सफलतापूर्वक प्रवर्धन किया जा सकता है। जुलाई के महीने में कलमों को पौधों से लिया जाता है कलमों पर ऊपर दो पतियां रखी जाती है तथा निचली पतियों को हटा देते है।

कलमों को उपचारित करने के लिए कलम के निचले भाग को 5000 पी पी एम आई बी ए के घोल मे कुछ क्षणो के लिए रखा जाता है।

बाद मे कलमों को 3, 4 सप्ताह के लिए मिट्टी के नीचे रख देते है। जडे़ आ जाने के बाद एक वर्ष तक इन कलमों को नर्सरी में लगा कर रखते हैं। उसके बाद इसका बाग में रोपण किया जाता है।

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कीवी की सिंचाई तथा फलों की तोड़ाई

रोपण:- बागों में लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर तथा लाइन में पौधे से पौधे की दूरी 6 मीटर रखते हैं। रोपण से पूर्व 1*1*1 मी॰ आकार के गढ्ढे गर्मियों में खोदकर 15 से 20 दिनों के लिए खुला छोड दे ताकि सूर्य की तेज गर्मी से कीडे़ मकोड़े मर जाएंंगे।

गड्डा खोदते समय पहले ऊपर की 6″ तक की जीवांशयुक्त मिट्टी खोद कर अलग रख लेते हैं तथा गड्डे भरते समय इस मिट्टी को पूरे गड्डे की मिट्टी के साथ मिला देते जिससे जीवांशयुक्त मिट्टी पूरी तरह लाभ प्रदान कर सके।

कीवी के पौधे कि मादा पौधों की एक निश्चित संख्या के बीच में परागण हेतु एक नर पौधा भी लगा हो इसके लिए नर तथा मादा का अनुपात 1:6, 1:8 या 1:9 रखना चाहिए।
कीवी की खेती

मिट्टी में एक भाग सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट जिसमें ट्रायकोडर्मा मिला हुआ हो, को भी मिलाएं तथा गढ्ढों को जमीन की सतह से 20 से 25 से॰मी॰ ऊंचाई तक भर दे।

पौधों को भरे हुए गड्ढौं के मध्य में लगाये तथा उनके बाद तुरंत सिंचाई कर दें। पौधों को शीत काल के उपरान्त अथवा बसन्त के प्रारंभ में लगाये।

कीवी के पौधे कि मादा पौधों की एक निश्चित संख्या के बीच में परागण हेतु एक नर पौधा भी लगा हो इसके लिए नर तथा मादा का अनुपात 1:6, 1:8 या 1:9 रखना चाहिए।

खाद:- कीवी फल के पौधों की वृद्वि और उत्पादन उर्वरको की सही मात्रा पर निर्भर करता है। अतः मृदा परीक्षण के उपरांत निर्देश अनुसार उर्वरक का प्रयोग करें।

सिंचाई:- मई-जून और सितम्बर-अक्टूबर में सिंचाई का पूरा प्रबन्ध आवशयक है। इस समय सिंचाई में अनियमित वृद्वि तथा उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते है।

सिधाई और काट छांट:- कीवी की लताओं को सीधा रखने के लिये इन्हें आधार प्रदान करना आवश्यक है।

प्रारंभ में पौधों को लकड़ी के डंडों के सहारे ऊपर चलाते हैं तथा सुतली से बांध देते हैं । प्रथम वर्ष पौधे को लगभग भूमि से 30 से॰मी॰ की उचांई से काटा जाता है।

बाद में एक शाखा को ट्रेलिस पर चढ़ा दिया जाता है। मुख्य शाखा में से दो शाखायें निकाली जाती है उन दोनों शाखाओं पर 2 फीट की दूरी पर अनेक शाखाएं निकलती है जिन्हें तारों पर फैला देते है। इस विधि को 4-5 साल तक दुहराना पड़ता है। उसके बाद पौधे फल देने लगते है।

फलों की तोड़ाई उपज:- इसकी औसतन उपज 1 पौधे से 50-100 कि॰ग्रा॰ पायी गयी है। फलों को सही परिपक्व स्थिति पर ही तोड़ना चाहिए जो कि अक्टूबर-नवम्बर है।

भंडारण:- शीतगृहों मे चार महीने तक आसानी से सुरक्षित रखे जाने वाले इस फल को दूर भेजने में भी कोई हानि नही होती, क्योंकि वह अधिक टिकाऊ है।

कमरे के तापमान पर इसे एक माह तक रखा जा सकता है जिसके फलस्वरूप बाजार में इसको लम्बे समय तक बेच कर अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

लोकप्रिय होने के कारण दिल्ली व अन्य बड़े शहरों मे इसे आसानी से अच्छे दामों पर बेचा जाता है।

फसलबाज़ार

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