परिचय:- राजस्थान तथा गुजरात मेथी पैदा करने वाले राज्यों में अग्रणी है। 80 फीसदी से अधिक मेथी का उत्पादन इन दोनों राज्यों में होता है। इसकी खेती मुख्यतः रबी मौसम में की जाती है, दक्षिण भारत में इसकी खेती बारिश के मौसम में की जाती है।
यह औषधीय गुणों से भरपूर भोज्यपदार्थ है। इसका उपयोग मुख्य रूप से हरी सब्जी, भोजन, दवा, सौन्दर्य प्रसाधन आदि में किया जाता है। मेथी के बीज सब्जी तथा अँचार के जायके को बढ़ाने के लिए मसाले के रूप में किया जाता है।
भूमि:- अच्छे जल निकास वाली सभी तरह की मिट्टी में मेथी के फसल को उगाया जा सकता है। दोमट व बलुई दोमट मिट्टी में पैदावार अच्छी मिलती है।
खेत की तैयारी:- जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें फिर 2-3 जुताईयाँ देशी हल या हैरो से करने के बाद पाटा लगाकर भूमि को समतल करें।
बुुआई के समय खेत में नमी उचित होना जरूरी है। दीमक से छुटकारा के लिए पाटा लगाने से पहले, क्विनालफास या मिथाइल पैराथियान 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला दे।
उन्नत किस्में:- मेथी की फसल से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिए उन्नत किस्मों का चयन करें। जैसे- हिसार सोनाली, हिसार सुवर्णा, हिसार मुक्ता, एएफजी 1, 2 व 3 आरएमटी 1 व 143, राजेन्द्र क्रान्ति को 1 और पूसा कसूरी, पूसा अर्ली बचिंग आदी।
बीज दर:- सामान्यतः मेथी की खेती के लिए बीज 20 – 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखनी चाहिए। खराब बीजों को छांटकर अलग निकाल दे।
बीजोपचार:- थाइरम या बाविस्टिन 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज को उपचारित करके बोने से बीज जनित रोगों से बचा जा सकता है।
बुुआई की विधि:- मेथी की बुआई छिटकवां विधि या पंक्तियों में की जाती है। छिटकवां विधि में बीज को समतल क्यारियों में समान रूप से बिखेरा जाता है। फिर उनको हाथ अथवा रेक की सहायता से मिट्टी में मिला दिया जाता है।
यह किसानों द्वारा अपनाई जा रही पुरानी विधि है। इसमें अधिक बीज लगती और निराई-गुडाई में भी परेशानी होती है।
खाद और उर्वरक:- मिट्टी जाँच के आधार पर खाद और उर्वरक की मात्रा को तय करना चाहिए। सामान्यतः मेथी की अच्छी पैदावार के लिए बुआई से 3 हफ्ते पहले 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद डाल देनी चाहिए।
सामान्य उर्वरता वाली जमीन के लिए प्रति हेक्टेयर 25 से 35 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 से 25 किलोग्राम फास्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश खेत में बोआई से पहले देनी चाहिए।
मेथी की सिंचाई तथा फसल में लगने वाले रोग।
सिंचाई प्रबंधन:- यदि नमी की कमी महसूस हो तो बुुआई के तुरन्त बाद एक हल्की सिंचाई की जा सकती है, अन्यथा पहली सिंचाई 4-6 पत्तियाँ आने पर ही करें।
सर्दी में 2 सिंचाइयों का अंतर 15 से 25 दिन तथा गर्मी में 10 से 15 दिन का अंतर रखना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण:- खेत को खरपतवार से मुक्त रखने के लिए कम-से-कम 2 निरी-गुड़ाई करें। पहली बुुआई के 30 से 35 दिन बाद और दूसरी 60 से 65 दिन बाद तीसरी करनी चाहिए, जिससे मिट्टी खुली बनी रहे और उसमे हवा भरपुर मात्रा में आ सके।
मेथी की फसल में लगने वाले रोग।
छाछया रोग:- इस रोग में शुरुआती अवस्था में पत्तियों पर सफेद चूर्णिल पुंज दिखाई पड़ सकते हैं। बाद में पूरे पौधे का रंग बदल जाता है। रोकथाम के लिए बुआई के 60 से 75 दिन बाद नीम आधारित घोल जल के साथ मिलाकर छिड़काव करें।
मृदुरोमिल फफूंद:- इस रोग के बढ़ने पर पत्तियाँ पीली पड़ कर गिरने लगती हैं और पौधे की बढ़वार रुक जाती है तथा पौधा मर भी सकता है। नियंत्रण के लिए किसी भी फफूंदनाशी जैसे फाइटोलान, नीली कॉपर या डाईफोलटान के घोल का छिड़काव करें।
जड़ गलन:- यह मृदाजनित रोग है। इसमें पत्तियाँ पीली पड़ कर सूखना शुरू होती हैं अन्ततः पूरा पौधा सूख जाता है। फलियाँ बनने के बाद इनके लक्षण देर से नजर आते हैं। इससे बचाव के लिए बीज को उपचारित करके बुआई करनी चाहिए।
फसल कटाई:- अक्टूबर माह में बोई गई फसल 5 बार तथा नवम्बर माह में बोई गई फसल 4 बार कटाई के लिय तैयार होती है। इसके बाद फसल को बीज के लिए छोड़ दिया जाता है।
बुआई के 30 दिन बाद पहली कटाई करें, फिर 15 दिन के अन्तराल पर कटाई करते रहें। पत्तियाँ पूरी तरह पीली होने पर बीज के लिए कटाई करें। फल पूरी तरह सूखने पर बीज निकाल कर सूखा लें और भण्डारण करें।
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