प्याज एक वनस्पति है। इसके जड़ को सब्ज़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत के महाराष्ट्र में प्याज़ की खेती सबसे ज्यादा होती है। महाराष्ट्र के नाशिक को प्याज का गढ़ कहा जाता है। इसमें प्रोटीन एवं कुछ मात्रा में विटामिन भी पाए जाते हैं। इसकी खेती 5000 वर्षों से अधिक समय से होती आई है। प्याज में गंधक पाए जाने की वजह से प्याज में गंध और तीखापन होता है।
उपयोग:- मसाले के रूप में, आयुर्वेद औषधि, भोजन पकाने, सलाद में, आँखों की ज्योति में, मवेशियों के भोजन, किटनाशक आदी में।
उत्पादन:- किसी भी सब्जी के वैज्ञानिक तरीके से उत्पादन में उसके किस्मों का अधिक महत्व है। मिट्टी के अनुसार कौन सी किस्म अनुशंसित हैं। ये अधिक उपज देने के साथ-साथ जलवायु के लिए उपयुक्त भी हैं।
भारत में विकसित किस्में:- पूसा रेड, पूसा माधवी, पंजाब सेलेक्शन, अरका निकेतन, अरका कल्याण, अरका बिंदु, बसवंत 780, एग्री फाउंड लाइट रेड, पंजाब रेड राउंड, कल्याणपुर रेड राउंड, हिसार-। आदी।
प्याज की खेती, बीज एवं बुआई का समय।
खेती:- प्याज की खेती के लिए भूमि का चयन भी आवश्यक है क्योंकी कंद का विकास भूमि की संरचना पर निर्भर करता है। जीवांश युक्त हल्की दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
बीज की मात्रा:- बीज की गुणवत्ता के आधार पर इसके उपज की मात्रा निर्भर करती है। बीज स्वस्थ हों तथा बीज की अंकुरण क्षमता प्रमाणित हो। एक हेक्टेयर प्याज़ लगाने के लिए 10-12 किग्रा बीज की आवश्यकता होती है।
बुआई का समय:- बीजों की बुआई का समय अक्टूबर- नवम्बर के महीनें में किया जाता है।
खेत में रोपाई:- खेतों में इसकी रोपाई दिसंबर- जनवरी के महीने में की जाती है।
बिहार के सबौर के कृषि महाविद्यालय में कुछ वर्षों के लगातार प्रयोग के आधार पर खाद एवं उर्वरक के कुछ तथ्य सामने आएं जिसे भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान वारणसी के द्वारा प्रमाणित किया गया है।
मात्रा निर्धारण:- कम्पोस्ट 10 टन, 150 किग्रा नेत्रजल,60 किग्रा फास्फोरस 30 किग्रा पोटाश प्रति हेक्टेयर रखने की अनुशंसा की गई है।
बरसाती प्याज की खेती:- इसकी खेती में एन -53 की खेती ज्यादा होती है। महाराष्ट्र में इसकी खेती सबसे अधिक होती है। इनकी खेती मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं बिहार में भी की जाने लगी है। नेफेड के द्वारा सेट लगाकर उगाने की तकनीक भी विकसित की गई है जो लाभकारी है।
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