आलू की पारंपरिक तथा वैज्ञानिक खेती और व्यापार।

आलू को यदी सब्जियों का राजा कहें तो कोई ग़लती नहीं होगी। वैसे तो यह मूल रूप से अमेरिका की सब्ज़ी है। लेकिन भारत के सब्जियों का आधार आलू हीं है। बिना इसके हम आधे से अधिक भोज्य पदार्थ की कल्पना भी नहीं कर सकते। आलू की खेती भारत के 27 राज्यों में की जाती है। उत्तर प्रदेश इसकी खेती में अग्रणी है।

आलू को यदी सब्जियों का राजा कहें तो कोई ग़लती नहीं होगी। वैसे तो आलू मूल रूप से अमेरिका की सब्ज़ी है। लेकिन भारत के सब्जियों का आधार आलू हीं है। बिना आलू के हम आधे से अधिक भोज्य पदार्थ की कल्पना भी नहीं कर सकते।
आलू की खेती

आलू की पारंपरिक खेती तथा मिट्टी और जलवायु:- दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टियाँ जिसमें जैविक पदार्थ की बहुलता हो इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। इसकी खेती में तापमान का बहुत महत्व है। इसकी अच्छी उपज के लिए औसत तापमान कंद बनने के समय 17 से 21 डिग्री सेंटिग्रेड उपयुक्त माना जाता है।

खेत की तैयारी:- सितंबर माह के अंतिम सप्ताह में हल से 4 से 5 बार जुताई करनी चाहिय। प्रत्येक जुताई के बाद पानी पटाना भी अनिवार्य है। अंतिम जुताई के साथ 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर मिला दें। तथा दीमक के प्रकोप से बचने के लिए 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लिंडेन मिट्टी में मिला दें।

फसल चक्र:- प्रतिवर्ष एक ही खेत में आलू की खेती करने से मिट्टी की गुणवत्ता समाप्त हो जाती है। मिट्टी कीड़ों और बीमारियों का घर बन जाती है, 2 फसल आलू तथा 3 फसल सघन खेती प्रणाली में अच्छी फसल होती है।

आलू के साथ उपायुक्त फसल चक्र:- मक्का- आलू- गेहूँ, मक्का -आलू-प्याज, मक्का-आलू-भिंडी और मक्का-गेहूँ-मूंग।

आलू की उन्नत किस्में एवं बुआई का समय।

अगेती किस्मों में कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी कुबेर, कुफरी बहरा इत्यादि प्रमुख हैं। ये किस्में 80-90 दिनों में तैयार हो जाती हैं। पछेती किस्मों में कुफरी सिंदूरी अधिक लाभदायक है।

अगेती किस्मों में कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी कुबेर, कुफरी बहरा इत्यादि प्रमुख हैं। ये किस्में 80-90 दिनों में तैयार हो जाती हैं। पछेती किस्मों में कुफरी सिंदूरी अधिक लाभदायक है।
आलू

बुआई का समय:- बुआई के समय तापमान 30 -18 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहनी चाहीये। अक्टूबर के मध्य से नवंबर के मध्य तक इसकी बोआई आवश्य कर देनी चाहिय।

मिट्टी चढाना:- पौधे जब 20-25 दिनों के हो जाये तो निराई- गुड़ाई करके खरपतवार साफ करके मिट्टी भुरभुरा कर दें। फिर नाइट्रोजन खाद की आधी मात्रा जड़ से 50 सेमी दूर रखकर मिट्टी चढ़ा दें।

सिंचाई:- पहली सिंचाई बुआई के एक सप्ताह बाद और फिर 8-10 दिनों पर नियमित सिचाई जरूरी है, पानी आधी मोड़ तक ही दें।

किट व रोग नियंत्रण:- समय पर किट व रोग नियंत्रण नहीं करने से फसल बर्बाद होने की संभावना है। इसके लिए फसल को देखते रहना आवश्यक है। इस फसल को सबसे अधिक ख़तरा लाही कीटों से है, ये किट विषाणु रोग भी फैलाते हैं।

इससे बचाव के लिए मेटासिस्टोक्स 0.1 प्रतिशत 2 से 3 बार 15 दिनों के अंतराल पर छिड़काव जरूरी है। इसके अलावा झुलसा रोग भी बहुत हानिकारक है इससे बचाव के लिय इंडोफिल एम-45 का छिड़काव जरूरी है।

पाला से बचाव:- पाला से बचाव के लिए सींचई आवश्यक है। इसकी खुदाई इसके पत्ते पीले पड़ने पर करनी चाहिए। आलू की अच्छी पैदावार सामान्य किस्मों में 300 से 350 क्विंटल तथा संकर किस्में 350 से 600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। जो किसानों के लाभ की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।

फसल बाज़ार

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