परिचय:- कोरोना महामारी ने हमें यह सिखा दिया कि यह बहुत जरुरी है की हम आत्मनिर्भर बनकर अपने परिवार के साथ-साथ अपने देश को फिर से प्रगति के मार्ग पर खड़ा करें। एक समय में भारत अपने हस्तकला के लिए प्रसिद्ध हुआ करता था लेकिन अब ये कहीं खो सा गया है। पश्चिमी संस्कृति को अनुकूलित करते-करते, धीरे-धीरे हम अपनी मूल संस्कृति को भूलते जा रहे हैं।
अब समय आ गया है की हम अपने देश की खोयी हुयी कला को फिर से सम्मान दें। ऐसे ही प्रसिद्ध हस्तकलाओं में से एक उदहारण है हमारे देश के कुम्हार।
महामारी की मार से नहीं उबर पा रहा कुम्हारों का व्यापार:- कुम्हारों के द्वारा बनाये गए मिट्टी के सामान जैसे की बर्तन, दीये, मूर्तियां, घरों के डेकोरेटिव आइटम, जग, कप आदि की मांग जितनी देश में है, उतनी विदेशों में भी है।
ग्राम खोकसा बुज़ुर्ग के श्री नंदू पंडित पिछले चालीस वर्ष से अपने परिवार के साथ मिलकर मिट्टी के बर्तन, दीये बनाने का काम कर रहे हैं। और इस साल भी उन्हें उम्मीद है की लोग बढ़-चढ़ कर दीवाली के अवसर पे दिए और बर्तन की खरीददारी करेंगे।
भारत के मिट्टी के बने सामान दुनिया भर में भेजे जाते है। लेकिन कोरोना काल में हुए लॉकडाउन से इन कुम्हारों पर भी काफी प्रभाव पड़ा है।
दिवाली और दशहरा जो कुम्हारों के लिए सीजन का समय है और दीवाली के लिए तैयारियां गर्मियों से शुरू हो जाती हैं, इस समय भी उनके द्वारा बनायीं सामानों की बिक्री नहीं हो पा रही है जिस वजह से उनके आर्थिक स्थिति पे भी प्रभाव पड़ रहा है।
दिल्ली के उत्तम नगर में स्थित कुम्हार कॉलोनी के हरकिशन का कहना है की इस कॉलोनी में 500 परिवार रहते हैं और सभी कुम्हारी का व्यापार करते है। उन्होंने बताया की इस बार सिर्फ 25% का व्यापार चल रहा है।
उन्हें उम्मीद है की हलाकि अभी उतनी संख्या में बिक्री नही हो रही लेकिन चाइना के सामान पर बैन लगने से उन्हें बहुत फायदा हो सकता है, व्यापार में तीन गुना फर्क पड़ेगा।
किशोरी लाल जो कि सन् 70 से कुम्हारी का काम कर रहे हैं, उनका कहना है की इस बार व्यापार मंदा चल रहा है। वैसे तो वे एक सीजन में कमाते हैं, और उसी कमाई से पूरी सर्दि निकल जाती थीं लेकिन इस बार लॉकडाउन की वजह से सामान नहीं बिक रहा।
उन्होंने बताया की जो दुकानदार उनसे सामान खरीदते थे उनके पास भी पुराना सामान पहले से ही है और इस बार महंगाई की वजह से लोग भी थोड़ा खर्च कम करेंगे।
किशोरी लाल जी बस यही दुआ करते है की इस बार कम से कम खर्चा ही निकल जाए, क्योंकि अच्छे व्यापार की उम्मीद उन्हें कम है।
ये वो लोग है जो कई पीढ़ियों से यही काम कर रहे है और इनके नयी पीढ़ियां भी यही काम सीखती है। अभी समय है की हम अपने देश के ऐसे लोगो की मेहनत को सराहेऔर उनसे सामान खरीद के उन्हें इस परिस्थिति से बाहर निकलने में मदद करे, साथ ही देश को आत्मनिर्भर बनायें।
हम सभी के द्वारा उठाया गया एक छोटा कदम किसी और की दिवाली में एक बड़ा अंतर ला सकता है, उनकी दीवाली खुशहाल बना सकता है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान को सफल बनाये, इस दिवाली घर को मिटटी के दियो से सजाएं।