परिचय:- बैंगन की खेती अधिक ऊंचाई वाले स्थानों को छोड़कर भारत में लगभग सभी क्षेत्रों में प्रमुख सब्जी की फसल के रूप में की जाती है।
यह वर्ष में दो बार उगाया जाता है, अक्टूबर नवंबर तथा जुलाई अगस्त। पौष्टिकता की दृष्टि से इसे टमाटर के समकक्ष समझा जाता है। बैंगन की हरी पत्तियों में विटामिन ‘सी’ पाया गया है। इसके बीज क्षुधावर्द्धक होते हैं तथा पत्तियां मन्दाग्नि व कब्ज में फायदा पहुंचाती हैं।
भूमि का चुनाव:- इसकी खेती अच्छे जल निकास युक्त सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है। बलुई दोमट से लेकर भारी मिट्टी जिसमें कार्बिनक पदार्थ की पर्याप्त मात्रा हो, उपयुक्त होती है। भूमि का पी.एच मान 5.5-6.0 की बीच होना चाहिए तथा इसमें सिंचाई का उचित प्रबंध होना आवश्यक है।
उन्नत किस्में:- बैंगन मुख्यतः बैंगनी, सफेद, हरे, गुलाबी एवं धारीदार रंग के होते हैं। आकार में गोलकार, अंडाकार, लंबे एवं नाशपाती के आकार के होते हैं।
बागवानी एवं कृषि-वानिकी शोध कार्यक्रम, रांची में किये गये अनुसन्धान कार्यो के फलस्वरूप निम्नलिखित किस्में इस क्षेत्र के लिए विकसित की गई है:-
पंजाब बहार:- इस किस्म के पौधे की लंबाई 93 सैं.मी. होती है। इसके फल गोल, गहरे जामुनी रंग के और कम बीजों वाले होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 190 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पंजाब नंबर 8 :- यह किस्म दरमियाने कद की होती है। इसके फसल दरमियाने आकार के, गोल और हल्के जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
जमुनी जी ओ आई (एस 16):- यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार की गई है और इसके फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं।
पंजाब बरसाती:- यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है और यह किस्म फल छेदक को सहनेयोग्य है। इसके फल दरमियाने आकार के, लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पंजाब नीलम:- यह किस्म पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवर्सिटी द्वारा बनाई गई है और इसके फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 140 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पूसा परपल लौंग:- यह जल्दी पकने वाली किस्म है, सर्दियों में यह 70-80 दिनों में और गर्मियों में यह 100-110 दिनों में पक जाती है। इस किस्म के बूटे दरमियाने कद के और फल लंबे और जामुनी रंग के होते हैं। इसकी औसतन पैदावार 130 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पूसा परपल क्लसचर:- यह किस्म आई. सी. ए. आर. नई दिल्ली द्वारा बनाई गई है। यह दरमियाने समय की किस्म है। इसके फल गहरे जामुनी रंग और गुच्छे में होते हैं। यह किस्म झुलस रोग को सहने योग्य होती है।
पूसा हाइब्रिड 5 :- इस किस्म के फल लंबे और गहरे जामुनी रंग के होते है। यह किस्म 80-85 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। इसकी औसतन पैदावार 204 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
अन्य किस्में
स्वर्ण शक्ति:- पैदावार की दृष्टि से उत्तम यह एक संकर किस्म है। इसके पौधों कि लंबाई लगभग 70-80 सेंटीमीटर होती है। फल लंबे चमकदार बैंगनी रंग के होते हैं। फल का औसतन भार 150-200 ग्रा. के बीच होता है। इस किस्म से 700-750 क्वि./हे. के मध्य औसत उपज प्राप्त होती है।
स्वर्ण श्री:- इस किस्म के पौधे 60-70 सेंटीमीटर लम्बे, अधिक शाखाओंयुक्त, चौड़ी पत्ती बाले होते हैं। फल अंडाकार मखनिया-सफेद रंग के मुलायम होते हैं। यह भुरता बनाने के लिए उपयुक्त किस्में है। भू-जनित जीवाणु मुरझा रोग के लिए सहिष्णु इस किस्म की पैदावार 550-600 क्वि./हे. तक होती है।
स्वर्ण मणि:- इसके पौधे 70-80 सेंटीमीटर लंबे एवं पत्तियां बैगनी रंग की होती है। फल 200-300 ग्राम वजन के गोल एवं गहरे बैंगनी रंग के होते हैं। यह भूमि से उत्पन्न जीवाणु मुरझा रोग के लिए सहिष्णु किस्म है। इसकी औसत उपज 600-650 क्वि./हे. तक होती है।
स्वर्ण श्यामलीभू:- जनित जीवाणु मुरझा रोग प्रतिरोधी इस अगेती किस्म के फल बड़े आकार के गोल, हरे रंग के होते हैं। फलों के ऊपर सफेद रंग के धारियां होती है। इसकी पत्तियां एवं फलवृंतों पर कांटे होते हैं। रोपाई के 35-40 दिन बाद फलों की तुड़ाई प्रारंभ हो जाती है। इसके व्यजंन बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं। इसकी लोकप्रियता छोटानागपुर के पठारी क्षेत्रों में अधिक है। इसकी उपज क्षमता 600-650 क्वि./हे. तक होती है।
इस प्रतिभाक्षेत्र में उग्र रूप में पाए जाने वाले जीवाणु मुरझा रोग के लिए यह एक प्रतिरोधी किस्म है। इसके फल बड़े आकार के लंबे चमकदार बैंगनी रंग के होते है। इसके फलों की बाजार में बहुत मांग है। किस्मं की उपज क्षमता 600-650 क्वि./हे. के बीच होती है।
बैंगन की बीज की बुआई, खाद एवं उर्वरक।
पौधे तैयार करना
पौधशाला की तैयारी:- पौधशाला में लगने वाली बीमारियों एवं कीटों के नियंत्रण हेतु पौधशाला की मिट्टी को सूर्य के प्रकाश से उपचारित करते हैं। इसके लिए 5-15 अप्रैल के बीच 3*1 मी. आकार की 20-30 सेंटीमीटर ऊँची क्यारियां बनाते हैं। प्रति क्यारी 20-25 कि. ग्रा. सड़ी हुई गोबर की खाद तथा 1.2 कि.ग्रा. करंज कि खली क्यारी में डालकर अच्छी तरह मिलाते हैं। तत्पश्चात क्यारियों की अच्छी तरह सिंचाई करके इन्हें पारदर्शी प्लास्टिक कि चादर से ढंक कर मिट्टी से दबा दिया जाता है।
इस क्रिया से क्यारी से हवा एवं भाप बाहर नहीं निकलती और 40-50 दिन में मिट्टी में रोगजनक कवकों एवं हानिकारक कीटों कि उग्रता कम हो जाती है। एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई के लिए ऐसी 20-25 क्यारियों की आवश्यकता होती है।
बीज की बुआई:- बैगन कि शरदकालीन फसल के लिए जुलाई-अगस्त में, ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी-फरवरी में एवं वर्षाकालीन फसल के लिए अप्रैल में बीजों की बुआई की जानी चाहिए। एक हेक्टेयर खेत में बैगन की रोपाई के लिए समान्य किस्मों का 250-300 ग्रा. एवं संकर किस्मों का 200-250 ग्रा. बीज पर्याप्त होता है।
पौधशाला में बुआई से पहले बीज को उपचारित करें। बुआई 5 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी लाइनों में करें। बीज से बीज की दुरी एवं बीज की गहराई 0.5-1.0 सेंटीमीटर के बीच रखें। बीज को बुआई के बाद सौरीकृत मिट्टी से ढकें । पौधशाला को अधिक वर्षा एवं कीटों के प्रभाव से बचाने के लिए नाइलोन की जाली लगायें।
खाद एवं उर्वरक:- अच्छी पैदावार के लिए 200-250 क्वि./हे. की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिए। इसके अतिरिक्त फसल में नत्रजन (260-325 कि.ग्रा. यूरिया), फॉस्फोरस, पोटाश, उचित मात्रा में मिलाएं।
बैगन की संकर किस्मों के लिए अपेक्षाकृत अधिक पोषण कि आवश्यकता होती है।
पौध रोपण:- बुआई के 21 से 25 दिन पश्चात पौधे रोपने के लिए तैयार हो जाते हैं। बैंगन की शरदकालीन फसल के लिए जुलाई-अगस्त में, ग्रीष्मकालीन फसल के लिए जनवरी-फरवरी में एवं वर्षाकालीन फसल के लिए अप्रैल-मई में रोपाई की जानी चाहिए।
रोपाई शाम के समय करें, एवं इसके बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे पौधों की जड़ों का मिट्टी के साथ सम्पर्क स्थापति हो जाता है। बाद में मौसम के सिंचाई की जा सकती है। फसल की समय-समय पर निदाई-गुड़ाई करनी आवश्यक होती है।
तुड़ाई:- बैंगन के फलों की मुलायम अवस्था में तुड़ाई करनी चाहिए। तुड़ाई में देरी करने से फल सख्त व बदरंग हो जाते हैं साथ ही उनमें बीज का विकास हो जाता है, जिससे बाजार में उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलता।
कीट एवं रोग नियंत्रण।
तना एवं फल बेधक:- यह कीट फसल को बहुत नुकसान पहुंचाता है। इसके पिल्लू शीर्ष पर पत्ती के जुड़े होने के स्थान पर छेद बनाकर घुस जाते हैं,तथा उसे अंदर से खाते हैं ।
फसल में फेरोमोन पाश लगाकर इस कीट के प्रभाव को कम किया जा सकत है। फलों पर कीट पर प्रकोप दिखाई देने पर नीम के बीच के रस का 4% की दर से घोल बनाकर 15 दिनों पर प्रयोग करें।
जैसिड्स:- ये कीट पत्तियों की सतह से लगकर रस चूसते हैं। जिसके फलस्वरूप पत्तियां पीली पर जाती हैं और पौधे कमजोर हो जाते हैं।
एपीलेकना बीटल:- ये कीट पौधों की प्रारंभिक अवस्था में बहतु हानि पहुंचाते हैं। ये पत्तियों को खार छलनी सदृश बना देते हैं। अधिक प्रकोप की दशा में पूरी फसल बर्बाद हो जाती है। इनकी रोकथाम के लिए कार्बराइल (2.0 ग्रा./ली.) अथवा पडान (1.0 ग्रा. ली.) का 10 दिन के अंतर पर प्रयोग करें।
डैम्पिंग ऑफ़ या आर्द्र गलन:- यह पौधशाला का फुफुदं जनित रोग है इसका प्रकोप दो अवस्थाओं में देखा गया है। प्रथम अवस्था में, पौधे जमीन की सतह से बाहर निकलने की अवस्था में। तथा अंकुरण के बाद के बाद, रोकथाम के लिए बाविस्टिन (2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) नामक फफुन्दनाशी दवा से बीजों का उपचार करें। साथ ही अंकुरण के बाद ब्लूकॉपर-50 (३ ग्रा./ली.) का प्रयोग करें।
फल सड़न (फोमोप्सिस ब्लाईट):- यह फफून्द के कारण होने वाला एक बीज जनित रोग है। प्रभावित पत्तियों पर प्रारंभ में छोटे-छोटे गोल भूरे धब्बे बन जाते हैं तथा बाद में अनियमित आकार के काले धब्बे पत्तियों के किनारों पर दिखाई देते हैं।
रोगी पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती है। फलों पर धूल कणों के समान भूरी रचनाएं दिखाई पड़ती हैं जो बाद में बढ़कर काले धब्बों के रूप में दिखाई देने लगती है। इस रोग के नियंत्रण के लिए बाविस्टिन (2 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) से बीजोपचार के बाद बुआई करें तथा फसल पर 0.1% बाविस्टिन का घोल बनाकर 10 दिनों के अंतर पर पौधों की प्रारंभिक अवस्था में 2-3 बार छिड़कें।
जीवाणु–जनित मुरझा रोग:- यह सोलेनेसी परिवार की सब्जियों की प्रमुख बीमारी है। इसके प्रकोप से पौधे मर जाते हैं। इसके बचाव हेतु प्रतिरोधी किस्में जैसे-स्वर्ण प्रतिभा, स्वर्ण श्यामली लगाएं। लगातार बैंगन, टमाटर, मिर्च एक स्थान पर न लगा कर अन्य सब्जियों का फसल चक्र में समावेश करें। खेत में 10 क्वि./हे. की दर से करंज की खली का प्रयोग रोपाई से 15 दिन पूर्व करने से रोग के प्रभाव में कमी आती है। रोपाई के पूर्व पौधों की जड़ों को स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (500 मि.ग्रा./ली.) के घोल में आधे घंटे तक डुबोएं।
बैगन छोटे किसानों के लिए एक अच्छा फसल है जिसे वह लगाने के कुछ दिन बाद से ही प्रति दिन कमाई कर सकते हैं।
A good content and nice information.
A good content and nice information Keep it up
Informative
Innovative
Informative 👌👌👌👍
good content and informative
A very qualitative content
👍👍
Hey visit my blog
👍👍👍👍
Impressive content !! Thanks for the information
Amritanshu bro keep it up🙌🏻
Great bhai 💯🔥
👍👍👍👍