परिचय:- तेज़ गंध से भरपूर तथा छोटे कंकड़ की तरह दिखने वाले हींग की बहुत थोड़ी सी मात्रा खाने का स्वाद बदल देती है। मसाले के प्रदेश भारत के रसोई घरों में रहने वाली यह एक आवश्यक और लोकप्रिय मसाला है, इसका इस्तेमाल भारत के हर प्रान्त में होता है।
तेज़ गंध वाले इस मसाले का पाचक के रूप में भी उपयोग होता है। इसको सूरज की रौशनी से दूर एयर-टाइट बॉक्स में रखा जाता है।
चर्चा में क्यूँ ?:- अचानक से हींग भारत में चर्चा का विषय बन गया है। इसका कारण यह है कि भारत में पहली बार इसकी खेती हिमाचल प्रदेश में इस्तेमाल की जा रही है। कॉउन्सिल फॉर साइंटिफिक एंड रिसर्च के अनुसार भारत में इसकी खेती पहली बार की जा रही है।
भारत में हींग का आयात:- भारत में यह नहीं उपजता लेकिन भारत में कुल हींग उत्पादन का 40% इस्तेमाल भारत में होता है। भारत में इसका आयात ईरान, अफ़नागिस्तान और उजबेगिस्तान आदी देशों से किया जाता है।
भारत में सबसे अधिक अफ़नागिस्तान से आने वाले हींग को पसंद किया जाता है। भारत में प्रत्येक वर्ष 1,200 टन हींग का आयात किया जाता है। जिसके लिए क़रीब 600 करोड़ की धनराशि खर्च करनी पड़ती है।
हींग की उच्च क़ीमत:- इसका पौधा भी गाज़र और मूली की श्रेणी में आता है। यह ठंढे और शुष्क वातावरण में उगाया जाता है। इसकी लगभग 130 किस्में पाई जाती हैं। इसमें से कुछ किस्में हीं भारत के पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल में उगाई जा रही है।
इसकी सबसे प्रमुख क़िस्म फेरूला एसफोइटीडा की खेती भारत में नहीं की जाती है। जिसे ईरान से मंगवाया गया है तथा पहली बार हिमाचल में इसकी खेती की जा रही। पौधा उग जाने के बाद भी ये तय नहीं रहता की इसकी उत्पादन प्राप्त हो सकती है या नहीं।
एक हींग के पौधे से उत्पाद प्राप्त होने में 4 वर्ष का समय लगता है, और क़रीब आधा किलोग्राम प्राप्त किया जाता है। यही कारण है की इसकी कीमत इतनी अधिक होती है। भारत में शुद्ध हींग की क़ीमत 35 से 40 हज़ार रुपए प्रति किलोग्राम है।
हींग का उत्पादन:- इसके पौधे के जड़ से निकाले गए रस से तैयार किया जाता है। लेकिन यह इतना भी आसान नहीं है, एक बार जब जड़ों से रस निकाल लेने के बाद हींग बनने की प्रक्रिया शुरू होती है।
वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार यह दो प्रकार के होते हैं, सफ़ेद और लाल। सफ़ेद हींग पानी में घुल जाता तथा लाल या काला हींग तेल में घुलता है। कच्चे हींग की गंध बहुत तीखी होती है इसलिए वह खाने लायक नहीं होता है।
गोंद तथा स्टार्च को मिलाकर उसे छोटे-छोटे टुकड़ों में खाने लायक तैयार किया जाता है। इसकी क़ीमत इस बात पर भी निर्भर करती है, कि उसमें क्या मिलाया गया है।
दक्षिण भारत में इसको पकाया जाता है, तथा पके हुए का पाउडर बनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसके पाउडर का इस्तेमाल मसालों में किया जाता है।
औषधीय गुण:- औषधीय गुणों से भरपूर होने के कारण आयुर्वेद में इसका बहुत महत्व है। यह शरीर में वात और कफ ठीक करने के साथ पित्त के स्तर को भी बढ़ाता है। यह शरीर को गर्म रखता है तथा भूख बढ़ाता है।
चरक संहिता में भी इसका जिक्र किया गया है, जो इसके ईसापूर्व से हो रहे इस्तेमाल की बात को सही ठहराता है। चरक संहिता में इसको एक पाचक के रूप में इस्तेमाल बतलाया गया है।
भारतीय लोग के लिए यह आवश्यक क्यों ?:- दिल्ली का खारी बावली एशिया का सबसे बड़े मसाले का बाज़ार है। प्याज और लहुसन के खाने में कुछ लोग हींग का इस्तेमाल निश्चित रूप से करते हैं। कुछ जगह मांसाहारी खाने में इसका इस्तेमाल करते हैं।