अजवाइन की खेती, उन्नत किस्में एवं व्यापारिक लाभ।

अजवाइन एक अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण मसाला है। यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है। इसकी खेती सीधे तौर पे औषधीय फसल के रूप में की जाती है। अजवाइन का पौधा झाड़ीनुमा होता है, यह धनिया कुल की प्रजाति का पौधा है।

परिचय:- अजवाइन एक अत्यंत उपयोगी और महत्वपूर्ण मसाला है। यह औषधीय गुणों से भी भरपूर है। इसकी खेती सीधे तौर पे औषधीय फसल के रूप में की जाती है। अजवाइन का पौधा झाड़ीनुमा होता है, यह धनिया कुल की प्रजाति का पौधा है।

इसके दानो में कई तरह के खनिज तत्वों का मिश्रण पाया जाता है, जो मनुष्य के लिए लाभकारी है। इससे निकले तेल का इस्तेमाल औषधियों के रूप में किया जाता है।

इसकी खेती रबी की फसल के वक्त की जाती है, इसके पौधों को विकास करने के लिए सर्दी के मौसम की जरूरत होती है। इसमें अधिक बारिश की आवश्यकता नही होती है।

अजवाइन के पौधे कुछ हद तक सर्दियों में पड़ने वाले पाले को भी सहन कर सकते हैं, अजवाइन बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है, इस कारण इसकी खेती किसानों के लिए लाभ देने वाली मानी जाती है।

अजवाइन की खेती रबी की फसल के वक्त की जाती है, इसके पौधों को विकास करने के लिए सर्दी के मौसम की जरूरत होती है। इसकी खेती के लिए अधिक बारिश की आवश्यकता नही होती।
अजवाइन

उपयुक्त मिट्टी:- अजवाइन की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है जिसका पी.एच. मान 6.5-8 के मध्य हो।

हल्की बलुई दोमट मिट्टी उत्तम मानी जाती है। इसकी खेती अधिक नमी या जलभराव वाली भूमि में नही करनी चाहिए।

जलवायु और तापमान:- यह एक उष्णकटिबंधीय जलवायु का पौधा है। इसे विकास करने के लिए ठंडे मौसम की आवश्यकता होती है तथा दानों को पकने के दौरान अधिक गर्मी की आवश्यकता होती है।

पौधों के विकास के दौरान पौधों को खुली धूप की आवश्यकता होती है। भारत में इसके मुख्य उत्पादक राज्य महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश और राजस्थान है।

अजवाइन के पौधों को अंकुरित होने के लिए 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है।

सर्दियों के मौसम में यह न्यूनतम 10 डिग्री के आस-पास तापमान पर भी अच्छे से विकास कर लेते हैं। दानों के पकने के वक्त पौधों को 30 डिग्री के आसपास तापमान की जरुरत होती है।

उन्नत किस्में

असजवाइन के कुछ उत्तम किस्म इस प्रकार है।

लाभ सलेक्शन 1 – यह जल्दी पैदावार देने वाली किस्म है। इसका उत्पादन ज्यादातर राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों में किया जाता है।

यह रोपाई के लगभग 130 से 140 दिन बाद पक कर तैयार हो जाते हैं। उत्पादन 8 से 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

लाभ सलेक्शन 2 – यह किस्म सिंचित और असिंचित दोनों भूमि में कम समय में अधिक उत्पादन देने में समर्थ है। यह 135 दिनों के आस-पास पक कर तैयार हो जाते हैं।

जिनका आकार झाड़ीनुमा दिखाई देता हैं। इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल से अधिक पाया जाता है।

ऐ ऐ 1 – इस किस्म को नेशनल रिसर्च फॉर सीड स्पाइस, तबीजी, अजमेर द्वारा देरी से पैदावार देने के लिए तैयार किया गया है।

इसका औसतन उत्पादन 15 क्विंटल है। हर तरह की मिट्टी में उगाये जाने वाले ये किस्म रोपाई के लगभग 170 दिन के आस-पास पक कर तैयार हो जाते हैं।

ऐ ऐ 2 – जल्द पक-कर पैदावार देने वाली इस किस्म को नेशनल रिसर्च फॉर सीड स्पाइस, तबीजी, अजमेर द्वारा तैयार किया गाया है।

यह रोपाई के 145 दिन बाद पक-कर तैयार हो जाता है। प्रति हेक्टेयर उत्पादन 13 क्विंटल के आस-पास है। इसे सिंचित तथा कम पानी वाली दोनों तरह की भूमि में उगाया जा सकता है।

आर ए 1-80 – अजवाइन की देरी से पैदावार देने वाली यह किस्म रोपाई के लगभग 170 से 180 दिन बाद पैदावार देना शुरू कर देते हैं। औसतन उत्पादन प्रति हेक्टेयर 10 क्विंटल से अधिक है।

गुजरात अजवाइन 1 – बीज रोपाई के लगभग 170 दिन बाद पक-कर तैयार होने वाली इस किस्म का औसतन उत्पादन 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

आर ए 19-80 – यह लगभग 160 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं। जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल है।

अजवाइन की खेत की तैयारी एवं सिंचाई

खेत की तैयारी:- अजवाइन खेती के लिए मिट्टी भुरभुरी और साफ-सुथरी होनी चाहिए। प्रथम जुताई मिट्टी पलटने वाले हलों से करें, गहरी जुताई कर खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें।

उसके बाद खेत में सरी हुई गोबर की खाद को डालकर उसे कल्टीवेटर के माध्यम से दो से तीन तिरछी जुताई कर दें। बाद में फिर पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें।

पलेव करने के तीन से चार दिन बाद खेत की फिर से जुताई कर दें। तथा खेत में उचित मात्रा में रासायनिक खाद को छिड़ककर खेत में रोटावेटर चला दें। ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाये उसके बाद खेत को समतल कर एक तरफ ढाल बना दें, ताकी जल जमाव न हो।

अजवाइन के पौधों की रोपाई बीज और नर्सरी में तैयार की गई पौध दोनों के माध्यम से की जा सकती है। पौध के रूप में इसकी खेती करना ज्यादा बेहतर होता है। यह रवि की फसल है अतः इसे रवि के मौसम में लगाएं।
अजवाइन की खेती

पौध तैयार करना:- अजवाइन पौधों की रोपाई बीज और पौध दोनों माध्यम से की जाती है। पौध के माध्यम से रोपाई के लिए लगभग एक महीने पहले इसकी पौध नर्सरी में तैयार की जाती है।

नर्सरी में पौधे की तैयारी क्यारियों या प्रो-ट्रे में की जा सकती है। बीजों को क्यारियों में चार सेंटीमीटर के आस-पास दूरी रखते हुए पंक्तियों में लगा दें। बीजों की रोपाई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए।

रोपाई का तरीका और समय:- अजवाइन के पौधों की रोपाई बीज और नर्सरी में तैयार की गई पौध दोनों के माध्यम से की जा सकती है। पौध के रूप में इसकी खेती करना ज्यादा बेहतर होता है। यह रवि की फसल है अतः इसे रवि के मौसम में लगाएं।

छिड़काव विधि:- बीज के माध्यम से रोपाई छिड़काव विधि के माध्यम से की जाती है। छिड़काव विधि से रोपाई में प्रति हेक्टेयर तीन से चार किलो बीज की जरूरत होती है।

इसके बीजों की रोपाई से पूर्व उपचारित कर लेना चाहिए। रोपाई के लिए पहले खेत में उचित आकार की क्यारियाँ बनाकर उनमें इसके बीजों को छिड़कर दंताली या हाथों से मिट्टी में एक सेंटीमीटर की गहराई में मिला दे।

कतारों में रोपाई:- पौधों की रोपाई खेत में उचित दूरी पर मेड बनाकर की जाती है। मेड़ों से मेड़ के बीच एक से सवा फिट की दूरी और पौधों से पौधों के बीच 25 सेंटीमीटर के आस-पास दूरी होनी चाहिए। अगेती किस्मों की रोपाई सितम्बर के अंत से अक्टूबर के मध्य तक कर देनी चाहिए।

पौधों की सिंचाई:- रोपाई सुखी या नम भूमि में की जाती है, अतः रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। सिंचाई के दौरान पानी का भाव धीमा ही रखे, तेज़ भाव में सिंचाई करने पर इसका बीज बहकर किनारों पर चला जाता है।

खरपतवार नियंत्रण, पैदावार तथा लाभ

उर्वरक की मात्रा:- खेती हेतु उर्वरक की सामान्य आवश्यकता होती है। प्रारंभ में खेत की तैयारी के वक्त खेत में 12 से 15 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद दें।

इसके अलावा रासायनिक खाद के रूप में 80 किलो एन.पी.के. की मात्रा को खेत की आखिरी जुताई के वक्त, तथा विकास के दौरान 25 किलो के आस-पास यूरिया खाद प्रति हेक्टेयर।

खरपतवार नियंत्रण:- अजवाइन के पौधों को खरपतवार नियंत्रण की आवश्यकता भी होती है। पहली गुड़ाई रोपाई के लगभग 25 से 30 दिन बाद।

इसके बाद उचित समय पर करते रहें, अधिक नजदीक दिखाई देने वाले पौधों को उखाड़कर नष्ट कर दे। अजवाइन के पौधों में खरपतवार नियंत्रण के लिए दो गुड़ाई काफी होती हैं।

पौधों में लगने वाले रोग

माहू – माहू रोग का प्रभाव मौसम में परिवर्तन के दौरान दिखाई देता है।

रोकथाम के लिए डाइमिथोएट, मैलाथियान या मोनोक्रोटोफास की उचित मात्रा का छिडकाव करें।

झुलसा रोग – यह रोग फफूंद की वजह से फैलता है। पौधों पर यह रोग मौसम में नमी के बने रहने की वजह से दिखाई देता है।

रोकथाम के लिए पौधों पर मैंकोजेब की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

चूर्णिल आसिता – इस रोग का प्रभाव कवक के माध्यम से फैलता है।

रोकथाम के लिए पौधों पर घुलनशील गंधक की उचित मात्रा का छिड़काव करना चाहिए।

फसल की कटाई:- अजवाइन के पौधे रोपाई के लगभग 140 से 160 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। जब गुच्छे अच्छे से पक कर भूरे हो जायें तब उसके पौधों की कटाई कर उन्हें खेत में एकत्रित कर सूखा लेना चाहिए। दाने अच्छे से सुख जाने के बाद गुच्छों को लकड़ी की डंडी से पीटकर दानो को अलग कर ले।

पैदावार और लाभ:- अजवाइन का उत्पादन औसतन 10 क्विंटल के आस-पास पाया जाता है। जिसका बाजार भाव 12 हजार से लेकर 20 हजार रूपये प्रति क्विंटल तक मिल जाता है। इस हिसाब से एक हेक्टेयर से सवा लाख से दो लाख तक की कमाई आसानी से की जा सकती है।

फसलबाज़ार

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